Monday, 18 June 2012

"मेरे शहर में "


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Friday, 11 May 2012


मन के खेल निराले मेरे भैय्या !

डा. अरविन्द कुमार सिंह

नीत्शे से किसी ने एक बार पूछा - तुम हमेशा हसते रहते हो, प्रसन्न रहते हो। नीत्शे ने कहा - ''अगर तुमने पूछ ही लिया है तो मै असलियत भी बता दू। मै इसलिये हसता रहता हू कि कही रोने न लगू। आदमी विलकुल वैसा नही है जैसा दिखइ पडता है। भीतर कुछ और है बाहर कुछ और है। इस सम्पूर्ण प्रकि्या को संचालित कर रहा है व्यकित का मन। यहा यह सूत्र समझ लेने जैसा है कि भय के होते हुये व्यकित, मन का साक्षात्कार नही कर सकता। इसलिये भय को छोडकर साहस पूर्वक हमे स्वंय को देखने की तैयारी करनी होगी।

पत्नी रो रही थी, विलख रही थी और पति को जगाये जा रही थी,'' उठो ! अपना पप्पू अब दुनिया में नही रहा। आखिरकार पति ने आखे खोली, र्निविकार रूप से वह अपनी पत्नी का चेहरा निहारता रहा। पत्नी बोली, '' पप्पू अब दुनिया में नही रहा, तुम रोते क्यो नही ? पति के चेहरे पर अब भी आश्चर्य का भाव था। उसने कहा ,'' किसके लिये रोऊ? सपना देख रहा था, मेरे बारह पुत्र थ वो मर गये, उनके लिये रोऊ? - सोकर उठा तुमने बताया अपना पप्पू मर गया उसके लिये रोऊ? अगर ये सच है तो वो सपना क्या था? अगर सपना सच था तो ये क्या है? मै सो गया तो सपना कौन देख रहा था? मैं बडी ऊलझन में हू। 

वे कौन है? विचार जिसकी खुराक है।अतीत में विचरण करना जिसका शगल है और भविष्य के सपने बुनना जिसकी आदत है।उससे मात्र मृत्यु के उपरान्त ही पीछा छुडाया जा सकता है या पीछा छुट सकता है। हा अध्यात्मीक व्यकित ध्यान के माध्यम से उसे नियन्त्रीत कर सकता है। शब्दो के माध्यम से यदि उसे कोइ नाम दिया जाय तो उसे मन कहा जा सकता है। 

व्यकित की पाच स्वर्णेदि्य और पाच कर्मेदि्य होती है। इसे नियन्त्रीत करने वाला आत्मवान कहलाता है। सच्चे अर्थो में वही अध्यात्मीक पुरूष है।विडम्बना तो ये है, जब इन इन्द्रीयो की कमान आत्मा के हाथ में होती है तो व्यकित सदमार्ग पर अग्रसर होता है और जब मन हुकूमत करता है तब व्यकित दुखी और गलत मार्ग पर अग्रसर होता है। यहा यह समझ लेने जैसा है कि मन हमेशा द्वैत में होता है जबकि आत्मा एकल और सत्य चिन्तन के साथ होता है।

मन की पकड दसो इन्द्रीयों  पर ढीली करने के लिये आवश्यक है कि हम इसकी कार्यप्रणाली को समझ ले। विचार मन की खुराक है। विचार की उत्पति वाक्य विन्यास से है और वाक्य विन्यास भाषा की विषय वस्तु है।भाषा का ज्ञान हमारे विचार को संचालित कर देता है।विचार संचालित होते ही हमारा मन कार्यरत हो जाता है। वो अतीत और भविष्य में चला जाता है। मन की खसियत है वो या तो रहेगा अतीत में या फिर रहेगा भविष्य में। वर्तमान में उसकी उपसिथती, उसकी मृत्यु है।साधना का सम्पूर्ण सूत्र वर्तमान में होने पर टिका है। यही कारण है, ध्यान की ज्यादातर विधिया स्वास पर आधरित है, क्येकि स्वास के अतीत या भविश्य में होने की कोर्इ व्यवस्था नही है।वो जब भी होगी वर्तमान में होगी। 

बडी दिलचस्प बात है। हमे डाक्टर प्रमाण देता है कि हम पूर्णत: स्वस्थ है, क्या यह प्रमाण पत्र सच के करीब है? आर्इये देखते है - र्इमानदारी से दस मिनट के लिये आपके मन में जो भी विचार आता है, उसे आप वैसा ही लिख ले। लिखने के बाद उसे किसी अन्य व्यकित को पढने को दे। विश्वास माने उस व्यकित की प्रतिकि्रया आपके प्रति चौकाने वाली होगी। उस व्यकित की तो बात आप छोड दे  आप खुद ही आश्चर्य से भर जायेगे कि मेरे मन के भीतर यह क्या चल रहा है? मै स्वस्थ हू या विक्षिपत हू? हम दस मिनट के लिये भी मन के भीतर झाक कर नही देखते कि वहा क्या चल रहा है। 

हो सकता है हम इसलिये न झाकते हो कि हमे बहुत गहरे में इस बात का पता है कि वहा क्या चल रहा है। उपर से हम एक दूसरे से अच्छी बातचीत करके अपना काम चला लेते है, भीतर विचारो की आग जलती है, उपर से हम शात और स्वस्थ मालूम होते है। भीतर सब ठीक नही है। हम अस्वस्थ एवं विक्षिपत है।मुस्कुराहटो के पीछे ढेर सारे आसुओं का जखीरा है।

नीत्शे से किसी ने एक बार पूछा - तुम हमेशा हसते रहते हो, प्रसन्न रहते हो। नीत्शे ने कहा - ''अगर तुमने पूछ ही लिया है तो मै असलियत भी बता दू। मै इसलिये हसता रहता हू कि कही रोने न लगू। आदमी विलकुल वैसा नही है जैसा दिखार्इ पडता है। भीतर कुछ और है बाहर कुछ और है। इस सम्पूर्ण प्रकि्या को संचालित कर रहा है व्यकित का मन। यहा यह सूत्र समझ लेने जैसा है कि भय के होते हुये व्यकित, मन का साक्षात्कार नही कर सकता। इसलिये भय को छोडकर साहस पूर्वक हमे स्वंय को देखने की तैयारी करनी होगी।

क्या यह दिलचस्प बात नही कि हम आत्मा पाने के लिये उत्सुक होते है, परमात्मा के दर्शन के लिये भी उत्सुक होते है पर अपने सीधे और सच्चे दर्शन का साहस नही जुटा पाते है। याद रखे पहली सच्चाइ हमारा मन है जो विचारो के सहारे अतीत और भविष्य में भटकता रहता है। उसे ही देखना और जानना होगा तथा पहचानना होगा। आखिर कैसे? आइये थोडा इस पर विचार करे -

मन के कुछ नियम है। जिस चीज को हम रोकना चाहेगे, हटाना चाहेगे, बचाना चाहेगे वही चीच हमारे चित्त का केन्द्र बन जायेगी। हमारा आर्कषण हो जायेगी। उस आर्कषण के इर्द गिर्द ही मन चक्कर काटने लगेगा। हमारी बातो पर यकिन नही? आप कोशिश कर के देख लिजिये। 

हमे यह ख्याल में रखना होगा कि मन में क्या आये और क्या न आये इसका कोइ आग्रह लेने की जरूरत नही है। उसे सिर्फ देखना है, हमारी कोइ शर्त नही , कोइ बाध्यता नही। इसे इस रूप में समझे, जब आप कोइ फिल्म देखने जाते है और उससे जुडते है तो आपके  सारे इमोशन्स कार्य करने लगते है। आप रोते है, आप हसते है और आप फिल्म देखकर डरते भी है। पर ज्यो ही आप को ख्याल आता है कि आप फिल्म देख रहे है तो आप सारे इमोशन्स से बाहर आ जाते है। कुछ ऐसा ही ख्याल मन के साथ रखे ।

ध्यान हमे शब्द से परे ले जाते है। हमे वर्तमान में लाकर खडा कर देते है। याद रखे शब्द के आभाव में मन की कोइ सत्ता नही और आपके वर्तमान मे होते ही मन गायब हो जायेगा।क्यो कि उसकी उपसिथती के लिये अतीत और भविष्य आवश्यक है। मन को अतीत और भविष्य में जाने के लिये विचारो की खुराक आवश्यक है। इस लिये इस सूत्र को हमेशा ध्यान में रखे निषेध आर्कषण है,  इन्कार आमन्त्रण है। अत: मन में क्या आये और क्या न आये इसका कोइ आग्रह लेने की जरूरत नही है।

अपनी बात समाप्त करने के पूर्व कुछ बातो को संज्ञान मे लेने का आग्रह करूगा। यदि हमे मन के खेल को समझना है और उसके दुष्चक्र से बाहर निकलना है तो हमे याद रखना होगा -
  • भय को छोडकर स्वंय को हमारी देखने की तैयारी हो।

  • मन पर कोइ प्रतिबन्ध न लगाये।

  • मन के भीतर जो भी विचार उठे उसके प्रति हम तटस्थ भाव रखे।

यदि हमने ऐसा नही किया तो हो सकता है, चीनी दार्शनिक लाओत्से की तरह हमारी भी एक सुबह, कोर्इ उलझान लेकर, हमारे समक्ष उपसिथत हो - कहते है लाओत्से घर के बाहर उदास बैठा था।उसके पडोसी ने पूछा -'' तुम इतने उदास क्यो हो? मेरी उदासी का कारण कल रात देखा गया एक सपना है - लाओत्से ने जबाव दिया। ऐसा क्या था जो सपने ने तुम्हे इतना परेशान कर दिया, पडोसी ने पूछा? लाओत्से ने कहा - सुबह आख खुलते ही मै उलझन में पड गया हू।सपने में देखा मै एक तितली बन गया हू और बागीचे में फूलो पर मडरा रहा हू। आख खुलने पर सोच रहा हू। कही दिन में अब वो तितली तो नही सो गयी है और मै उसके सपने में आदमी तो नही बन गया हू।

मै समझ नही पा रहा हू मै तितली हू या आदमी?प्रश्नो का उत्तर प्रश्नो में ही छिपा है। जो समझ गया वो उलझन से पार और जो नही समझा वो दुख के सागर में गोते लगाता रहेगा। आपकी यात्रा विेवेक के  मार्ग पर अग्रसर हो , आप ध्यान को उपलब्द्ध हो, इसी शुभ के साथ, इस बार इतना ही।


सम्र्पक सूत्र -

सरस्वती सदन

एस 2215 के , सिकरौल 

भोजूबीर, वाराणसी - 221002

मेबाइल - 9450601903









Thursday, 5 April 2012

किसका लहू गिरा है, ये कौन मरा है



देश के राजनेताओं को जनलोकपाल की भाषा समझ में नही आती। काला धन देश में लाओ यह बात समझ में नही आती। हा, मुहावरे की भाषा बहुत जल्द समझ में आ जाती है। जब आदरणीय लालू जी अन्ना हजारे पर व्यंग कसते हुये संसद में अपनी बात कह रहे थे तब  संपूर्ण सदन आनन्दीत हो रहा था। कहते कहते जब उन्होने महावरे में अन्ना हजारे के लिये कोढी शब्द कहा ( कोढीया डरवाये थूक देब। ) तब किसी इलेक्ट्रानिक चैनल ने इसे विवादित बयान नही कहा। हा मनीष सिसोदिया ने बिना नाम लिये जब चोर की दाढी में........ कहा तो हंगामा छिड गया। राजनेताओ को कब से बाते लगने लगी ? भारत माता को डायन कहने पर जिस देश की संसद में उबाल न आता हो? विधान सभाओं में जब सदस्य अशलिल फिल्में देखे और राजनेताओं के चहरे पे जुम्बीश न आती हो?  स्वीस बैक में अरबो की सम्पति क्या किसी महात्मा की जमा है? और जिसकी जमा है उसे जनता चोर न कहे तो क्या कहे? बहुत समय के बाद किसी ने सच कहने की हिम्मत की है। अब तो राजनेताओ की बेशर्मी पर सच भारी पडने लगा है अगर ऐसा न होता तो फिर ये राजनेता आज संसद में इतने बौखलाये क्यो है? 

हूजूर थेाडा, गौर से पढिए , जो मैं नीचे लिखने जा रहा हू और अन्त में विचार किजियेगा जनता अभी तो मात्र कह रही है। वह दिन भी दूर नही जब एक दिन जंतर मंतर तहरीर चौक में तब्दील हो जायेगा। आगे की बात समझाने की नही वरन आज विश्व में जो हो रहा है उससे सबक लेने की है। 

भारतीय विसंगतियो की र्चचा करते हुये, अपनी बात कहना पसंद करूंगा। जो कुछ कहने जा रहा हू, उसे पढकर ना ही आप चौकेगे और ना ही आपको दुख होगा। क्योकि यही इस दौर का अभिशप्त मिजाज है या फिर आप कह सकते है, स्टार्इल है। क्या आप को पता है? हमारी सरकार ओलमिपक में निशानेबाजी में गोल्ड मेडल जीतने वाले निशानेबाज को तीन करोड रूपया देती है पुरूस्कार राशी के रूप में। वही आतंकवादीयों से लडते हुये वीरगति को प्राप्त भारतीय सेना के निशानेबाज को महज एक लाख रूपया देती है। टी टवन्टी का मैच बिना खेले खिलाडी पाता है तीन करोड और यदि नकस्लवादीयों के द्वारा एक सैनिक मारा जायेगा तो पायेगा महज एक लाख रूपया। खैर ये सब तो आपको पता ही होगा? लेकिन क्या आप को ये पता है? अमरनाथ के तीर्थ यात्रियों से जम्मू कश्मीर सरकार टैक्स वसूलती है और वही हमारी भारत सरकार मुसलमानो की हज यात्रा के लिये आठ सौ छब्बीस करोड रूपया मुहैया कराती है।

वो कौन है? जो देश की सरहदो पर अपनी जान देश के लिये न्योक्षावर कर रहा है? वह कौन है जो आतंकवादी घटनाओ में अपनी जान गवा रहा है? बम ब्लास्टो में किसका सुहाग उजड रहा है? वह कोर्इ भी हो सकता है पर यकिनन किसी राजनेता का पुत्र नही। राजनेता भी नही। राजनेता शब्द आते ही कुछ पुरानी यादे उभर आयी है। भारतीय जनता पार्टी ने आतंकवादी अजहर मसूद को कंधार ले जाकर सौप दिया । कहा राष्ट्रहित का मामला था। काग्रेस पार्टी ने हजरतबल में सेना के द्वारा घीरे आतंकवादीयो को बीरयानी ही नही खिलायी वरन सकुशल उन्हे सेना की गिरफत से बाहर निकल जाने दिया। कहा राष्ट्रहित का मामला था। जनता पार्टी के शासन काल में एक राजनेता की बेटी का सौदा आतंकवादीयों के बदले हुआ था।

इतना ही नही यह हमारी ही सरकार के राजनेता है, जो किसी घटना के होने के बाद पुर  जोर शब्दो में जनता को आश्वस्त करते दिखायी दे जायेगें, कि घटना में लिप्त किसी भी दोषी को बक्शा नही जायेगा। सख्त से सख्त कारवायी की जायेगी। अपराधी पकडे जाते है, सुप्रीम कोर्ट से फासी की सजा होती है। अब कमाल की बात देखीये हम उन्हे लटकाने को ही तैयार नही है। अब जरा राजनेताओ की बात सुनीये - फासी की सजा मानवता के विरूद्ध है। इस पर देश में चर्चा होनी चाहिये। जनाब यदि मेरी माने तो एक सवाल सूचना के अधिकार के तहद पूछिये ना सरकार से। हूजूर फासी की सजा पाये इन आतंकवादीयों पे जनता की कितनी गाढी कमार्इ आपने अभी तक खर्च की है? विश्वास जानिये रकम आपके होश उडा देगी। मुझे नही पता रार्इफल की एक बुलेट की किमत कितनी है? तुष्टी करण की राजनीति हर पार्टी का इमान धर्म है। जो वोट के टकसाल पर नये सिक्के की तरह खनकता है। यदि ऐसा न होता तो कश्मीर की केसर की क्यारीयों से आज बारूदी गंध न आती। वहा समस्या बेरोजगारी की है। समस्या उनकी भावनाओ को समझने की है। युवाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोडने की है। लेकिन सरकारे कश्मीर को वोट बैक के रूप में देखती है। और यही हमारी चूक है। आइये थेाडा राजनेताओ की देश भकित की बानगी भी देख ले - 

  •       उडीसा विधान सभा में राजीव गाधी के हत्यारो की फासी की सजा 

  •       माफ करने हेतु प्रस्ताव पारित किया गया। 

  • दूसरी तरफ जम्मू काश्मीर विधान सभा में संसद पर हमला करने  वाले अफजल गुरू की फासी       माफ करने का प्रस्ताव लाया गया। 

  • पंजाब सरकार आखिर कार पीछे क्यो रहती। उसने भुल्लर की फासी  की सजा माफ करने का    प्रस्ताव रख दिया। 

राजनेताओं का यह व्यवहार जनता को स्तम्भीत एवं चांैकाने वाला है। किस श्रेणी में रखा जाय इन     व्यवहारो को -

  • देश भकित

  • कर्तव्यपरायणता

  • कायरता या फिर

  • देश के प्रति गददारी

थेाडा नमूना और देखिये -

एक छोटा सा राष्ट्र जब पाता है कि आमने - सामने की लडार्इ में हम भारत से पार नही पायेगे तो वह अपनी स्टार्इल बदल कर गुरिल्ला युद्ध पर उतर आता है। अब न वह राष्ट्र हमसे सम्भलता है और न अपना कश्मीर। हमारी सरकारो के पास मात्र एक ही ब्रहम वाक्य है। पाकिस्तान हमारे ध्ैार्य की परीक्षा न ले। लेकिन पाकिस्तान कहा मानने वाला था उसने परीक्षा ली। संसद पर ही हमला कर दिया। हमने कुछ नही किया। हम अमेरिका थोडे ही है जिसने वल्र्ड टे्रड सेन्टर पर आतंकवादी हमले के ऐवज मे अफगानिस्तान को ही रौद दिया। पाच आतंकवादी पूरे मुम्बर्इ को ही बधंक बना लिये और हमारे राजनेता को दुख इस बात का था कि इतने कम आदमी क्यों मरे? यह जनरल नालेज का प्रश्न भी हो सकता है बच्चों के लिये। ऐसा किस राजनेता ने कहा था?

अगर पूर्वी पाकिस्तान की कहानी मात्र बहत्तर घंटे में समेटी जा सकती है और निन्यान्बे हजार सैनिका का आत्मसर्मपण कराया जा सकता है, तो आप ही बतलार्इये आजाद कश्मीर को समेटने मे भारतीय सेना को कितना समय लगेगा ?बस थोडी देर के लिये राजनेता अपनी प्रेतछाया से देश को मुक्त कर दे, समस्या सुलझती नजर आयेगी। राजनेताओ से कुछ अर्ज करना चाहूगा - हूजूर वोट के अलावा, राष्ट्र नाम का भी कुछ अपने राष्ट में है। देश के सैनिको की लाशों पर दो फूल चढाने और उनकी विधवाओं को सिलार्इ मशीन देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझने की आदतो से बाहर आकर इन आतंकवादीयों  को उनके अजांम तक पहुचाने की पहल करे। प्रत्येक नागरिक को सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य करे। और अपने लिये विशेष सैन्य प्रशिक्षण का प्रावधान करे। इसके आभाव में चुनाव लडने पर बैन करे। इस विश्वास के साथ कि राष्ट्र आपकी सुरक्षा करे, आप राष्ट्र की सुरक्षा करे। याद रखे - राष्ट्र जिन्दा रहेगा तभी हमारा वजूद जिन्दा रहेगा।

डा. अरविन्द कुमार सिंह

उदय प्रताप कालेज

वाराणसी

Monday, 2 April 2012

सच बात मान लिजिये, चहरे पे धूल है



सैन्य अधिकारियो को तैयार करने वाले, देहरादून के चिटवुड हाल की दिवाल पर तीन अति महत्वपूर्ण वाक्य लिखे हुये है। यह तीनो वाक्य भारतीय सेना में शामिल हो रहे युवा अधिकारियों के लिये है। यह वाक्य देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण की गारन्टी बनता हे। आर्इये पहले इन वाक्यों को देखें फिर चर्चा को आगे बढाये - 

  • राष्ट्र की सुरक्षा, राष्ट्र का सम्मान, राष्ट्र का कल्याण सदैव प्रथम स्थान पर है। 


  • सैनिको की सुरक्षा, सैनिको का सम्मान, सैनिको का कल्याण द्वितीय स्थान पर है।


  • अपनी सुरक्षा, अपना सम्मान, अपना कल्याण सदैव अनितम स्थान पर है।

सेना ज्यादातर इन वाक्यों के करीब जीती है, यही कारण है, उसने सर्वोच्च आर्दश स्थापित किया है। विगत कुछ वर्षो से सेना के अन्र्तगत धीरे धीरे तीसरे वाक्य को प्रभावी होते हुये हम देख रहे हैं । और उसके परिणाम से पूरा देश प्रभावित हो रहा है। 

बोर्फोस तोप की चर्चा उसकी गुणवत्ता के लिये नही वरन उसकी खरीद में दी गयी दलाली के लिये ज्यादा हुयी। दलाली का नेट वर्क कितना मजबूत था, इसका अन्दाजा इसी बात से लगार्इये कि 64 करोड की दलाली में 256 करोड मात्र इसके दलाल का पता लगाने में खर्च हो गये। अन्ततोगत्वा सी बी आर्इ ने केस को बन्द करने की संस्तुति कर दी। 

इस पूरे प्रकरण से एक बात स्पष्ट है। एक ट्रार्इगिंल इन सबको नियन्त्रीत कर रहा है। एक छोर पर राजनितिज्ञ - दूसरे छोर पर आयुद्ध सामग्री बेचने वाले दलाल तथा तीसरे छोर पर सैन्य अधिकारी है। अब ये तो मानना ही पडेगा कि अभी तक इस ट्रार्इगिंल की जंजीर की कडिया काफी मजबूत है। एक भी नेटवर्क का आजतक पर्दाफाश नही हुआ। न किसी को  सजा हुयी। और ना ही सार्वजनिक तौर पर कभी दलाली से इन्कार किया गया।

ऐसा नही कि इस कडी को तोडने का प्रयास नही हुआ। पर जिसने आवाज उठायी उसका हश्र जानना ज्यादा दिलचस्प होगा। तहलका से सन्दर्भित तरूण तेजपाल ने भी जब जार्ज फर्नाडिज रक्षा मंत्री थे एक दलाली का पर्दाफाश किया था। और उन्होने इसकी किमत भी चुकार्इ। उनके उपर अनगिनत मुकदमें लाद दिये गये। मानसिक और शारीरिक प्रताडना के दौर से उन्हे गुजारा गया। शायद इन सबका अघोषित मकसद यह सन्देश देना था कि इस तरह की आवाज उठाना महगा पडेगा। बोर्फोस की दलाली प्रकरण हमेशा के लिये दफन हो गयी।

और अब थोडा वर्तमान प्रकरण। वर्तमान स्थल सेनाध्यक्ष ने सुप्रीम र्कोट मे मुकदमा किया, मेरी हार्इ स्कूल की जन्मतिथी के अनुरूप सेना में मेरी जन्मतिथी नही लिखी है।सेना ज्वार्इन करते वक्त 1950 दर्ज कर दिया गया जबकि हार्इस्कूल प्रमाणपत्र में 1951 है। इस पूरे प्रकरण को दो एंगिल से देखा जा सकता है। पहला एंगिल सेनाध्यक्ष के नजरिये से - जिन्हे एक साल की समयाअवधि नौकरी के लिये और मिलती। तथा दूसरा एंगिल 1950 से 1951 के बीच नये बनने वाले स्थल सेनाध्यक्ष के रूप में देखा जा सकता है।

सुप्रीम र्कोट द्वारा 1950 जन्मतिथी मानने की सिथति में , निश्चित ही इससे जिसको फायदा हुआ होगा, वह खुश हुआ होगा। यहा वर्तमान सेनाध्यक्ष की उस बात को उद्धृरित करना चाहूगा। जब उन्होने कहा था कि मुझे रिश्वत की पेशकश की गयी थी। पेशकश करने वाले ने एक महत्वपूर्ण बात उनसे कहा था। आप के पहले भी लोग लेते रहे है, आप भी लिजिये और आगे भी लोग लेते रहेगें। क्या इसका यह अर्थ भी निकल सकता है कि देश के इस सर्वोच्च पद की नियुक्ती में दलालो की भी महत्वपूर्ण भूमिका है?

इतना तो मानना पडेगा, जनरल सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखना, सी बी आर्इ को दलाली प्रकरण पर जाच हेतु पत्र लिखना, यह दर्शाता है कि सबकुछ ठीक नही चल रहा है। राजनेता, दलाल और सेनाध्यक्ष में, सेनाध्यक्ष ने मुह खोला है। इसे र्इमानदार पहल के रूप में देखा जा सकता है। सरकार को एक मौका मिला है, इसकी तह तक जाने का। इस सन्र्दभ में इतनी कठोर कार्यवायी होनी चाहिये कि गलत कार्य करने वालो को इससे सबक मिले। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्र गौरवान्वीत होगा तथा गददारो को उनके अंजाम तक पहुचाने में मदद मिलेगी। 

वर्तमान राजनितिक चरित्र अपने दोहरेपन के कारण इस सन्दर्भ में देश का विश्वास अर्जित करने में विफल दिखार्इ दे रहा है। विश्वास नही होता तो कुछ बानगी देखिए -

  • वर्तमान केनिद्रय सरकार द्वारा बेअन्त कौर के हत्यारे की फासी पर रोक।


  • उडीसा विधान सभा द्वारा राजीव गाधी के हत्यारेा की सजा माफी पर प्रस्ताव पारित।


  • जम्मू कश्मीर विधान सभा द्वारा अफजल गुरू की फासी की सजा माफी प्रस्ताव पारित।


  • पंजाब विधान सभा द्वारा भुल्लर की फासी की सजा माफ करने का प्रस्ताव पारित।

यह सब तो कुछ भी नही है। आज राजनैतिक शुचिता की आवाज उठाने वाले अन्ना हजारे को संसद मे मुल्जीम की तरह पेश किया जाय ऐसा भी कुछ सांसद चाहते है। ऐसा चाहने वाले कभी रक्षा सौदे के दलालो को भी जेल के पीछे भेजने की हिम्मत जुटायेगें? हिम्मत शब्द इस लिये कि भारत माता को डायन कहने वाले के प्रति इनकी हिम्मत देश देख चुका है। अपने रक्षा मंत्री काल में सेना में आरक्षण खेजने वाले से हम और क्या आशा करे?आने वाले वक्त में , इस विन्दू पर संसद कहा है यह देखने वाली बात होगी। स्थल सेनाध्यक्ष की बरखास्तगी या फिर रक्षा सौदो के दलालो को सजा? 

भ्रष्टाचार के बरखिलाफ जनरल सिंह की यह मुहिम किसी अंजाम तक अवश्य पहुचनी चाहिये। मैं रक्षा मंत्री की बातो से सौ प्रतिशत सहमत हू कि पत्र लीक करने वाला गददार है। लेकिन उससे भी बडा गददार वो होगा जो इस सारे प्रकरण पर लिपा पोती करेगा। 

प्रधानमंत्री जी की र्इमानदारी भारी पडने लगी है देश को। यह र्इमानदारी सिर्फ दिखार्इ देती है। कुछ करती नहीं। कलमाडी, राजा और अब सेना। आखिर देश के राजनेता अपनी जिम्मेदारी कब स्वीकारेगें? इन्हे कब समझ में आयेगा राष्ट्र के उपर कोर्इ नही।

सच बात मान लिजिये, चेहरे पे धूल है

इल्जाम आर्इनो पे लगाना फिजूल है।।



डा. अरविन्द कुमार सिंह

वाराणसी