सैन्य अधिकारियो को तैयार करने वाले, देहरादून के चिटवुड हाल की दिवाल पर तीन अति महत्वपूर्ण वाक्य लिखे हुये है। यह तीनो वाक्य भारतीय सेना में शामिल हो रहे युवा अधिकारियों के लिये है। यह वाक्य देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण की गारन्टी बनता हे। आर्इये पहले इन वाक्यों को देखें फिर चर्चा को आगे बढाये -
- राष्ट्र की सुरक्षा, राष्ट्र का सम्मान, राष्ट्र का कल्याण सदैव प्रथम स्थान पर है।
- सैनिको की सुरक्षा, सैनिको का सम्मान, सैनिको का कल्याण द्वितीय स्थान पर है।
- अपनी सुरक्षा, अपना सम्मान, अपना कल्याण सदैव अनितम स्थान पर है।
सेना ज्यादातर इन वाक्यों के करीब जीती है, यही कारण है, उसने सर्वोच्च आर्दश स्थापित किया है। विगत कुछ वर्षो से सेना के अन्र्तगत धीरे धीरे तीसरे वाक्य को प्रभावी होते हुये हम देख रहे हैं । और उसके परिणाम से पूरा देश प्रभावित हो रहा है।
बोर्फोस तोप की चर्चा उसकी गुणवत्ता के लिये नही वरन उसकी खरीद में दी गयी दलाली के लिये ज्यादा हुयी। दलाली का नेट वर्क कितना मजबूत था, इसका अन्दाजा इसी बात से लगार्इये कि 64 करोड की दलाली में 256 करोड मात्र इसके दलाल का पता लगाने में खर्च हो गये। अन्ततोगत्वा सी बी आर्इ ने केस को बन्द करने की संस्तुति कर दी।
इस पूरे प्रकरण से एक बात स्पष्ट है। एक ट्रार्इगिंल इन सबको नियन्त्रीत कर रहा है। एक छोर पर राजनितिज्ञ - दूसरे छोर पर आयुद्ध सामग्री बेचने वाले दलाल तथा तीसरे छोर पर सैन्य अधिकारी है। अब ये तो मानना ही पडेगा कि अभी तक इस ट्रार्इगिंल की जंजीर की कडिया काफी मजबूत है। एक भी नेटवर्क का आजतक पर्दाफाश नही हुआ। न किसी को सजा हुयी। और ना ही सार्वजनिक तौर पर कभी दलाली से इन्कार किया गया।
ऐसा नही कि इस कडी को तोडने का प्रयास नही हुआ। पर जिसने आवाज उठायी उसका हश्र जानना ज्यादा दिलचस्प होगा। तहलका से सन्दर्भित तरूण तेजपाल ने भी जब जार्ज फर्नाडिज रक्षा मंत्री थे एक दलाली का पर्दाफाश किया था। और उन्होने इसकी किमत भी चुकार्इ। उनके उपर अनगिनत मुकदमें लाद दिये गये। मानसिक और शारीरिक प्रताडना के दौर से उन्हे गुजारा गया। शायद इन सबका अघोषित मकसद यह सन्देश देना था कि इस तरह की आवाज उठाना महगा पडेगा। बोर्फोस की दलाली प्रकरण हमेशा के लिये दफन हो गयी।
और अब थोडा वर्तमान प्रकरण। वर्तमान स्थल सेनाध्यक्ष ने सुप्रीम र्कोट मे मुकदमा किया, मेरी हार्इ स्कूल की जन्मतिथी के अनुरूप सेना में मेरी जन्मतिथी नही लिखी है।सेना ज्वार्इन करते वक्त 1950 दर्ज कर दिया गया जबकि हार्इस्कूल प्रमाणपत्र में 1951 है। इस पूरे प्रकरण को दो एंगिल से देखा जा सकता है। पहला एंगिल सेनाध्यक्ष के नजरिये से - जिन्हे एक साल की समयाअवधि नौकरी के लिये और मिलती। तथा दूसरा एंगिल 1950 से 1951 के बीच नये बनने वाले स्थल सेनाध्यक्ष के रूप में देखा जा सकता है।
सुप्रीम र्कोट द्वारा 1950 जन्मतिथी मानने की सिथति में , निश्चित ही इससे जिसको फायदा हुआ होगा, वह खुश हुआ होगा। यहा वर्तमान सेनाध्यक्ष की उस बात को उद्धृरित करना चाहूगा। जब उन्होने कहा था कि मुझे रिश्वत की पेशकश की गयी थी। पेशकश करने वाले ने एक महत्वपूर्ण बात उनसे कहा था। आप के पहले भी लोग लेते रहे है, आप भी लिजिये और आगे भी लोग लेते रहेगें। क्या इसका यह अर्थ भी निकल सकता है कि देश के इस सर्वोच्च पद की नियुक्ती में दलालो की भी महत्वपूर्ण भूमिका है?
इतना तो मानना पडेगा, जनरल सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखना, सी बी आर्इ को दलाली प्रकरण पर जाच हेतु पत्र लिखना, यह दर्शाता है कि सबकुछ ठीक नही चल रहा है। राजनेता, दलाल और सेनाध्यक्ष में, सेनाध्यक्ष ने मुह खोला है। इसे र्इमानदार पहल के रूप में देखा जा सकता है। सरकार को एक मौका मिला है, इसकी तह तक जाने का। इस सन्र्दभ में इतनी कठोर कार्यवायी होनी चाहिये कि गलत कार्य करने वालो को इससे सबक मिले। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्र गौरवान्वीत होगा तथा गददारो को उनके अंजाम तक पहुचाने में मदद मिलेगी।
वर्तमान राजनितिक चरित्र अपने दोहरेपन के कारण इस सन्दर्भ में देश का विश्वास अर्जित करने में विफल दिखार्इ दे रहा है। विश्वास नही होता तो कुछ बानगी देखिए -
- वर्तमान केनिद्रय सरकार द्वारा बेअन्त कौर के हत्यारे की फासी पर रोक।
- उडीसा विधान सभा द्वारा राजीव गाधी के हत्यारेा की सजा माफी पर प्रस्ताव पारित।
- जम्मू कश्मीर विधान सभा द्वारा अफजल गुरू की फासी की सजा माफी प्रस्ताव पारित।
- पंजाब विधान सभा द्वारा भुल्लर की फासी की सजा माफ करने का प्रस्ताव पारित।
यह सब तो कुछ भी नही है। आज राजनैतिक शुचिता की आवाज उठाने वाले अन्ना हजारे को संसद मे मुल्जीम की तरह पेश किया जाय ऐसा भी कुछ सांसद चाहते है। ऐसा चाहने वाले कभी रक्षा सौदे के दलालो को भी जेल के पीछे भेजने की हिम्मत जुटायेगें? हिम्मत शब्द इस लिये कि भारत माता को डायन कहने वाले के प्रति इनकी हिम्मत देश देख चुका है। अपने रक्षा मंत्री काल में सेना में आरक्षण खेजने वाले से हम और क्या आशा करे?आने वाले वक्त में , इस विन्दू पर संसद कहा है यह देखने वाली बात होगी। स्थल सेनाध्यक्ष की बरखास्तगी या फिर रक्षा सौदो के दलालो को सजा?
भ्रष्टाचार के बरखिलाफ जनरल सिंह की यह मुहिम किसी अंजाम तक अवश्य पहुचनी चाहिये। मैं रक्षा मंत्री की बातो से सौ प्रतिशत सहमत हू कि पत्र लीक करने वाला गददार है। लेकिन उससे भी बडा गददार वो होगा जो इस सारे प्रकरण पर लिपा पोती करेगा।
प्रधानमंत्री जी की र्इमानदारी भारी पडने लगी है देश को। यह र्इमानदारी सिर्फ दिखार्इ देती है। कुछ करती नहीं। कलमाडी, राजा और अब सेना। आखिर देश के राजनेता अपनी जिम्मेदारी कब स्वीकारेगें? इन्हे कब समझ में आयेगा राष्ट्र के उपर कोर्इ नही।
सच बात मान लिजिये, चेहरे पे धूल है
इल्जाम आर्इनो पे लगाना फिजूल है।।
डा. अरविन्द कुमार सिंह
वाराणसी
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