Tuesday 20 September 2011

हिंदी दिवस पर


हिंदी दिवस पर आप सभी हिंदी प्रेमी हिन्दुस्तानी और विदेशियों सभी को बधाई | इस शुभ अवसर पर हिंदी की दुर्गति पर भी कुछ शब्द कहना जरुरी है  | हिंदी आज अत्यंत उपेक्षित और पिछड़ी हुयी भाषा हो गयी है और इसका भी श्रेय हम हिंदीभाषियों को ही जाता है | हिंदी की उपेक्षा जितनी अंग्रेजों या अन्य विदेशियों ने नहीं की उतनी हम भारतीयों ने की है | इसका कारण हमारा आयातित भाषा अंग्रेजी के प्रति अगाध  प्रेम है | क्यूंकि आज़ादी के बाद ये हमारी भारी जिम्मेदारी बनती थी की हम हिंदी भाषा के  उत्थान  और उन्नयन  के लिए प्रयास  करते  पर इसके  बदले  हमने  अंग्रेजी भाषा के द्वारा  ही विकास  का रास्ता  खोजना  शुरू  कर  दिया और बस यहीं से हिंदी की भी दुर्गति का मार्ग प्रशस्त हो गया |हमने भारत के संविधान में इसे राजभाषा की मान्यता तो दी पर राजनीतिज्ञों  के कारण  यह अभी भी राष्ट्रभाषा नहीं बन पाई,  हिंदी का प्रयोग पिछड़ेपन का द्योतक बन गया | भारत का नवप्रगातिशील समाज हिंदी का प्रयोग करने से कतराने लगा | भारत के उभरते हुए तथाकथित नवधनिक  वर्ग ने अपने को अत्याधुनिक दिखाने के चक्कर में अंग्रेजी का धड़ल्ले से प्रयोग शुरू कर दिया | भारत के निम्न मध्यवर्ग ने जो उच्च वर्ग का  अन्धानुकरण करता है , हिंदी को हिकारत से देखते हुए अपने बच्चो से अंग्रेज बनने के अपेक्षा करने लगा | रही- सही कसर सिनेमा और टीवी ने पूरी कर दी क्योंकि इस से पश्चिम की वो आयातित सभ्यता भी भारत आई जिसमे कडवाहट भरी मिठास थी |  इस कारण ना केवल हमारी भाषा भ्रष्ट हुयी बल्कि हमारी सदियों पुरानी सभ्यता  और संस्कृति का भी सत्यानाश हो गया | हिंदी में अंग्रेजी के इस समावेश ने हिंदी को हिंगलिश बना दिया | आधुनिक बनने के चक्कर में हम ये भूल गए की हमारी वो संस्कृति  और सभ्यता नष्ट हो रही है जिस पर हमें बहुत नाज़ है क्योंकि जब आधुनिक विश्व में तकनीक और विज्ञान और विकास में जब हम पिछड़ते हैं तो इसी सभ्यता और संस्कृति की ढाल हमें बचाती है |  ये एक कडवी सच्चाई है की हम वर्तमान में विकास, शहरीकरण , तकनीक , स्वास्थ्य आदि में पश्चिम से बहुत पीछे हैं और इसका कारण हमारी भाषा को लेकर उपेक्षा ही है क्योंकि भाषा आत्मसम्मान है | हम पश्चिम की भदेस संस्कृति को ही अपने लिए उपयुक्त समझ रहे हैं जो कहीं से भी हमारे लिए उपयुक्त नहीं है | बालक और युवा वर्ग इस की गंभीरता को नहीं समझ सकता | इसकी ज़िम्मेदारी   नेताओं, अध्यापकों , बुद्धिजीवियों, माँ- बाप , अभिभावकों आदि समाज के जिम्मेदार लोगों पर है क्योंकि जो भाषा ,सभ्यता और संस्कृति हम तक इस विकसित स्वरुप में मिली उसके विकास में हजारों वर्ष लग गए | यदि यह नष्ट- भ्रस्ट हो गयी तो हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को क्या दे पायेंगे और कुछ दिनों बाद  हमारे पास और देने के लिए कुछ बचेगा  भी नहीं सिवाय भदेस भाषा और अपसंस्कृति के |   यहाँ भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की यह कविता देना समीचीन होगा-
 " निज भाषा उन्नति अहै ,
    सब उन्नति को मूल |
   बिन निज भाषा ज्ञान के ,
   मिटे न हिय को शूल |"
इतिहास साक्षी है के विश्व के अधिकाँश देश  यूनान, फ़्रांस, रूस, इटली, जर्मनी, इसराईल, चीन   इत्यादि ने अपनी भाषा में ही विकास किया और विकसित बने | उन्हें आधुनिक और विकसित  बनने के लिए उधार की भाषा की जरुरत नहीं पड़ी | हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि विश्व के तमाम देशों का  भारत के प्रति  आकर्षण भारत की विशिष्ट भाषा ,सभ्यता और संस्कृति के कारण है , यहाँ के शौपिंग मॉल और फ्लाई ओवर के कारण नहीं | अतः आज जरुरत है अपनी भाषा और संस्कृति को बचाने के लिए ईमानदारी से प्रयास करने की न कि सिर्फ  खोखली नारेबाजी करने की | क्योंकि इसी  भाषा , सभ्यता और संस्कृति के कारण  हमारी विश्व  में विशिष्ट और अनूठी पहचान है |

                                                                       (राजीव श्रीवास्तव , एडवोकेट )

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