Monday, 18 June 2012

"मेरे शहर में "


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Friday, 11 May 2012


मन के खेल निराले मेरे भैय्या !

डा. अरविन्द कुमार सिंह

नीत्शे से किसी ने एक बार पूछा - तुम हमेशा हसते रहते हो, प्रसन्न रहते हो। नीत्शे ने कहा - ''अगर तुमने पूछ ही लिया है तो मै असलियत भी बता दू। मै इसलिये हसता रहता हू कि कही रोने न लगू। आदमी विलकुल वैसा नही है जैसा दिखइ पडता है। भीतर कुछ और है बाहर कुछ और है। इस सम्पूर्ण प्रकि्या को संचालित कर रहा है व्यकित का मन। यहा यह सूत्र समझ लेने जैसा है कि भय के होते हुये व्यकित, मन का साक्षात्कार नही कर सकता। इसलिये भय को छोडकर साहस पूर्वक हमे स्वंय को देखने की तैयारी करनी होगी।

पत्नी रो रही थी, विलख रही थी और पति को जगाये जा रही थी,'' उठो ! अपना पप्पू अब दुनिया में नही रहा। आखिरकार पति ने आखे खोली, र्निविकार रूप से वह अपनी पत्नी का चेहरा निहारता रहा। पत्नी बोली, '' पप्पू अब दुनिया में नही रहा, तुम रोते क्यो नही ? पति के चेहरे पर अब भी आश्चर्य का भाव था। उसने कहा ,'' किसके लिये रोऊ? सपना देख रहा था, मेरे बारह पुत्र थ वो मर गये, उनके लिये रोऊ? - सोकर उठा तुमने बताया अपना पप्पू मर गया उसके लिये रोऊ? अगर ये सच है तो वो सपना क्या था? अगर सपना सच था तो ये क्या है? मै सो गया तो सपना कौन देख रहा था? मैं बडी ऊलझन में हू। 

वे कौन है? विचार जिसकी खुराक है।अतीत में विचरण करना जिसका शगल है और भविष्य के सपने बुनना जिसकी आदत है।उससे मात्र मृत्यु के उपरान्त ही पीछा छुडाया जा सकता है या पीछा छुट सकता है। हा अध्यात्मीक व्यकित ध्यान के माध्यम से उसे नियन्त्रीत कर सकता है। शब्दो के माध्यम से यदि उसे कोइ नाम दिया जाय तो उसे मन कहा जा सकता है। 

व्यकित की पाच स्वर्णेदि्य और पाच कर्मेदि्य होती है। इसे नियन्त्रीत करने वाला आत्मवान कहलाता है। सच्चे अर्थो में वही अध्यात्मीक पुरूष है।विडम्बना तो ये है, जब इन इन्द्रीयो की कमान आत्मा के हाथ में होती है तो व्यकित सदमार्ग पर अग्रसर होता है और जब मन हुकूमत करता है तब व्यकित दुखी और गलत मार्ग पर अग्रसर होता है। यहा यह समझ लेने जैसा है कि मन हमेशा द्वैत में होता है जबकि आत्मा एकल और सत्य चिन्तन के साथ होता है।

मन की पकड दसो इन्द्रीयों  पर ढीली करने के लिये आवश्यक है कि हम इसकी कार्यप्रणाली को समझ ले। विचार मन की खुराक है। विचार की उत्पति वाक्य विन्यास से है और वाक्य विन्यास भाषा की विषय वस्तु है।भाषा का ज्ञान हमारे विचार को संचालित कर देता है।विचार संचालित होते ही हमारा मन कार्यरत हो जाता है। वो अतीत और भविष्य में चला जाता है। मन की खसियत है वो या तो रहेगा अतीत में या फिर रहेगा भविष्य में। वर्तमान में उसकी उपसिथती, उसकी मृत्यु है।साधना का सम्पूर्ण सूत्र वर्तमान में होने पर टिका है। यही कारण है, ध्यान की ज्यादातर विधिया स्वास पर आधरित है, क्येकि स्वास के अतीत या भविश्य में होने की कोर्इ व्यवस्था नही है।वो जब भी होगी वर्तमान में होगी। 

बडी दिलचस्प बात है। हमे डाक्टर प्रमाण देता है कि हम पूर्णत: स्वस्थ है, क्या यह प्रमाण पत्र सच के करीब है? आर्इये देखते है - र्इमानदारी से दस मिनट के लिये आपके मन में जो भी विचार आता है, उसे आप वैसा ही लिख ले। लिखने के बाद उसे किसी अन्य व्यकित को पढने को दे। विश्वास माने उस व्यकित की प्रतिकि्रया आपके प्रति चौकाने वाली होगी। उस व्यकित की तो बात आप छोड दे  आप खुद ही आश्चर्य से भर जायेगे कि मेरे मन के भीतर यह क्या चल रहा है? मै स्वस्थ हू या विक्षिपत हू? हम दस मिनट के लिये भी मन के भीतर झाक कर नही देखते कि वहा क्या चल रहा है। 

हो सकता है हम इसलिये न झाकते हो कि हमे बहुत गहरे में इस बात का पता है कि वहा क्या चल रहा है। उपर से हम एक दूसरे से अच्छी बातचीत करके अपना काम चला लेते है, भीतर विचारो की आग जलती है, उपर से हम शात और स्वस्थ मालूम होते है। भीतर सब ठीक नही है। हम अस्वस्थ एवं विक्षिपत है।मुस्कुराहटो के पीछे ढेर सारे आसुओं का जखीरा है।

नीत्शे से किसी ने एक बार पूछा - तुम हमेशा हसते रहते हो, प्रसन्न रहते हो। नीत्शे ने कहा - ''अगर तुमने पूछ ही लिया है तो मै असलियत भी बता दू। मै इसलिये हसता रहता हू कि कही रोने न लगू। आदमी विलकुल वैसा नही है जैसा दिखार्इ पडता है। भीतर कुछ और है बाहर कुछ और है। इस सम्पूर्ण प्रकि्या को संचालित कर रहा है व्यकित का मन। यहा यह सूत्र समझ लेने जैसा है कि भय के होते हुये व्यकित, मन का साक्षात्कार नही कर सकता। इसलिये भय को छोडकर साहस पूर्वक हमे स्वंय को देखने की तैयारी करनी होगी।

क्या यह दिलचस्प बात नही कि हम आत्मा पाने के लिये उत्सुक होते है, परमात्मा के दर्शन के लिये भी उत्सुक होते है पर अपने सीधे और सच्चे दर्शन का साहस नही जुटा पाते है। याद रखे पहली सच्चाइ हमारा मन है जो विचारो के सहारे अतीत और भविष्य में भटकता रहता है। उसे ही देखना और जानना होगा तथा पहचानना होगा। आखिर कैसे? आइये थोडा इस पर विचार करे -

मन के कुछ नियम है। जिस चीज को हम रोकना चाहेगे, हटाना चाहेगे, बचाना चाहेगे वही चीच हमारे चित्त का केन्द्र बन जायेगी। हमारा आर्कषण हो जायेगी। उस आर्कषण के इर्द गिर्द ही मन चक्कर काटने लगेगा। हमारी बातो पर यकिन नही? आप कोशिश कर के देख लिजिये। 

हमे यह ख्याल में रखना होगा कि मन में क्या आये और क्या न आये इसका कोइ आग्रह लेने की जरूरत नही है। उसे सिर्फ देखना है, हमारी कोइ शर्त नही , कोइ बाध्यता नही। इसे इस रूप में समझे, जब आप कोइ फिल्म देखने जाते है और उससे जुडते है तो आपके  सारे इमोशन्स कार्य करने लगते है। आप रोते है, आप हसते है और आप फिल्म देखकर डरते भी है। पर ज्यो ही आप को ख्याल आता है कि आप फिल्म देख रहे है तो आप सारे इमोशन्स से बाहर आ जाते है। कुछ ऐसा ही ख्याल मन के साथ रखे ।

ध्यान हमे शब्द से परे ले जाते है। हमे वर्तमान में लाकर खडा कर देते है। याद रखे शब्द के आभाव में मन की कोइ सत्ता नही और आपके वर्तमान मे होते ही मन गायब हो जायेगा।क्यो कि उसकी उपसिथती के लिये अतीत और भविष्य आवश्यक है। मन को अतीत और भविष्य में जाने के लिये विचारो की खुराक आवश्यक है। इस लिये इस सूत्र को हमेशा ध्यान में रखे निषेध आर्कषण है,  इन्कार आमन्त्रण है। अत: मन में क्या आये और क्या न आये इसका कोइ आग्रह लेने की जरूरत नही है।

अपनी बात समाप्त करने के पूर्व कुछ बातो को संज्ञान मे लेने का आग्रह करूगा। यदि हमे मन के खेल को समझना है और उसके दुष्चक्र से बाहर निकलना है तो हमे याद रखना होगा -
  • भय को छोडकर स्वंय को हमारी देखने की तैयारी हो।

  • मन पर कोइ प्रतिबन्ध न लगाये।

  • मन के भीतर जो भी विचार उठे उसके प्रति हम तटस्थ भाव रखे।

यदि हमने ऐसा नही किया तो हो सकता है, चीनी दार्शनिक लाओत्से की तरह हमारी भी एक सुबह, कोर्इ उलझान लेकर, हमारे समक्ष उपसिथत हो - कहते है लाओत्से घर के बाहर उदास बैठा था।उसके पडोसी ने पूछा -'' तुम इतने उदास क्यो हो? मेरी उदासी का कारण कल रात देखा गया एक सपना है - लाओत्से ने जबाव दिया। ऐसा क्या था जो सपने ने तुम्हे इतना परेशान कर दिया, पडोसी ने पूछा? लाओत्से ने कहा - सुबह आख खुलते ही मै उलझन में पड गया हू।सपने में देखा मै एक तितली बन गया हू और बागीचे में फूलो पर मडरा रहा हू। आख खुलने पर सोच रहा हू। कही दिन में अब वो तितली तो नही सो गयी है और मै उसके सपने में आदमी तो नही बन गया हू।

मै समझ नही पा रहा हू मै तितली हू या आदमी?प्रश्नो का उत्तर प्रश्नो में ही छिपा है। जो समझ गया वो उलझन से पार और जो नही समझा वो दुख के सागर में गोते लगाता रहेगा। आपकी यात्रा विेवेक के  मार्ग पर अग्रसर हो , आप ध्यान को उपलब्द्ध हो, इसी शुभ के साथ, इस बार इतना ही।


सम्र्पक सूत्र -

सरस्वती सदन

एस 2215 के , सिकरौल 

भोजूबीर, वाराणसी - 221002

मेबाइल - 9450601903









Thursday, 5 April 2012

किसका लहू गिरा है, ये कौन मरा है



देश के राजनेताओं को जनलोकपाल की भाषा समझ में नही आती। काला धन देश में लाओ यह बात समझ में नही आती। हा, मुहावरे की भाषा बहुत जल्द समझ में आ जाती है। जब आदरणीय लालू जी अन्ना हजारे पर व्यंग कसते हुये संसद में अपनी बात कह रहे थे तब  संपूर्ण सदन आनन्दीत हो रहा था। कहते कहते जब उन्होने महावरे में अन्ना हजारे के लिये कोढी शब्द कहा ( कोढीया डरवाये थूक देब। ) तब किसी इलेक्ट्रानिक चैनल ने इसे विवादित बयान नही कहा। हा मनीष सिसोदिया ने बिना नाम लिये जब चोर की दाढी में........ कहा तो हंगामा छिड गया। राजनेताओ को कब से बाते लगने लगी ? भारत माता को डायन कहने पर जिस देश की संसद में उबाल न आता हो? विधान सभाओं में जब सदस्य अशलिल फिल्में देखे और राजनेताओं के चहरे पे जुम्बीश न आती हो?  स्वीस बैक में अरबो की सम्पति क्या किसी महात्मा की जमा है? और जिसकी जमा है उसे जनता चोर न कहे तो क्या कहे? बहुत समय के बाद किसी ने सच कहने की हिम्मत की है। अब तो राजनेताओ की बेशर्मी पर सच भारी पडने लगा है अगर ऐसा न होता तो फिर ये राजनेता आज संसद में इतने बौखलाये क्यो है? 

हूजूर थेाडा, गौर से पढिए , जो मैं नीचे लिखने जा रहा हू और अन्त में विचार किजियेगा जनता अभी तो मात्र कह रही है। वह दिन भी दूर नही जब एक दिन जंतर मंतर तहरीर चौक में तब्दील हो जायेगा। आगे की बात समझाने की नही वरन आज विश्व में जो हो रहा है उससे सबक लेने की है। 

भारतीय विसंगतियो की र्चचा करते हुये, अपनी बात कहना पसंद करूंगा। जो कुछ कहने जा रहा हू, उसे पढकर ना ही आप चौकेगे और ना ही आपको दुख होगा। क्योकि यही इस दौर का अभिशप्त मिजाज है या फिर आप कह सकते है, स्टार्इल है। क्या आप को पता है? हमारी सरकार ओलमिपक में निशानेबाजी में गोल्ड मेडल जीतने वाले निशानेबाज को तीन करोड रूपया देती है पुरूस्कार राशी के रूप में। वही आतंकवादीयों से लडते हुये वीरगति को प्राप्त भारतीय सेना के निशानेबाज को महज एक लाख रूपया देती है। टी टवन्टी का मैच बिना खेले खिलाडी पाता है तीन करोड और यदि नकस्लवादीयों के द्वारा एक सैनिक मारा जायेगा तो पायेगा महज एक लाख रूपया। खैर ये सब तो आपको पता ही होगा? लेकिन क्या आप को ये पता है? अमरनाथ के तीर्थ यात्रियों से जम्मू कश्मीर सरकार टैक्स वसूलती है और वही हमारी भारत सरकार मुसलमानो की हज यात्रा के लिये आठ सौ छब्बीस करोड रूपया मुहैया कराती है।

वो कौन है? जो देश की सरहदो पर अपनी जान देश के लिये न्योक्षावर कर रहा है? वह कौन है जो आतंकवादी घटनाओ में अपनी जान गवा रहा है? बम ब्लास्टो में किसका सुहाग उजड रहा है? वह कोर्इ भी हो सकता है पर यकिनन किसी राजनेता का पुत्र नही। राजनेता भी नही। राजनेता शब्द आते ही कुछ पुरानी यादे उभर आयी है। भारतीय जनता पार्टी ने आतंकवादी अजहर मसूद को कंधार ले जाकर सौप दिया । कहा राष्ट्रहित का मामला था। काग्रेस पार्टी ने हजरतबल में सेना के द्वारा घीरे आतंकवादीयो को बीरयानी ही नही खिलायी वरन सकुशल उन्हे सेना की गिरफत से बाहर निकल जाने दिया। कहा राष्ट्रहित का मामला था। जनता पार्टी के शासन काल में एक राजनेता की बेटी का सौदा आतंकवादीयों के बदले हुआ था।

इतना ही नही यह हमारी ही सरकार के राजनेता है, जो किसी घटना के होने के बाद पुर  जोर शब्दो में जनता को आश्वस्त करते दिखायी दे जायेगें, कि घटना में लिप्त किसी भी दोषी को बक्शा नही जायेगा। सख्त से सख्त कारवायी की जायेगी। अपराधी पकडे जाते है, सुप्रीम कोर्ट से फासी की सजा होती है। अब कमाल की बात देखीये हम उन्हे लटकाने को ही तैयार नही है। अब जरा राजनेताओ की बात सुनीये - फासी की सजा मानवता के विरूद्ध है। इस पर देश में चर्चा होनी चाहिये। जनाब यदि मेरी माने तो एक सवाल सूचना के अधिकार के तहद पूछिये ना सरकार से। हूजूर फासी की सजा पाये इन आतंकवादीयों पे जनता की कितनी गाढी कमार्इ आपने अभी तक खर्च की है? विश्वास जानिये रकम आपके होश उडा देगी। मुझे नही पता रार्इफल की एक बुलेट की किमत कितनी है? तुष्टी करण की राजनीति हर पार्टी का इमान धर्म है। जो वोट के टकसाल पर नये सिक्के की तरह खनकता है। यदि ऐसा न होता तो कश्मीर की केसर की क्यारीयों से आज बारूदी गंध न आती। वहा समस्या बेरोजगारी की है। समस्या उनकी भावनाओ को समझने की है। युवाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोडने की है। लेकिन सरकारे कश्मीर को वोट बैक के रूप में देखती है। और यही हमारी चूक है। आइये थेाडा राजनेताओ की देश भकित की बानगी भी देख ले - 

  •       उडीसा विधान सभा में राजीव गाधी के हत्यारो की फासी की सजा 

  •       माफ करने हेतु प्रस्ताव पारित किया गया। 

  • दूसरी तरफ जम्मू काश्मीर विधान सभा में संसद पर हमला करने  वाले अफजल गुरू की फासी       माफ करने का प्रस्ताव लाया गया। 

  • पंजाब सरकार आखिर कार पीछे क्यो रहती। उसने भुल्लर की फासी  की सजा माफ करने का    प्रस्ताव रख दिया। 

राजनेताओं का यह व्यवहार जनता को स्तम्भीत एवं चांैकाने वाला है। किस श्रेणी में रखा जाय इन     व्यवहारो को -

  • देश भकित

  • कर्तव्यपरायणता

  • कायरता या फिर

  • देश के प्रति गददारी

थेाडा नमूना और देखिये -

एक छोटा सा राष्ट्र जब पाता है कि आमने - सामने की लडार्इ में हम भारत से पार नही पायेगे तो वह अपनी स्टार्इल बदल कर गुरिल्ला युद्ध पर उतर आता है। अब न वह राष्ट्र हमसे सम्भलता है और न अपना कश्मीर। हमारी सरकारो के पास मात्र एक ही ब्रहम वाक्य है। पाकिस्तान हमारे ध्ैार्य की परीक्षा न ले। लेकिन पाकिस्तान कहा मानने वाला था उसने परीक्षा ली। संसद पर ही हमला कर दिया। हमने कुछ नही किया। हम अमेरिका थोडे ही है जिसने वल्र्ड टे्रड सेन्टर पर आतंकवादी हमले के ऐवज मे अफगानिस्तान को ही रौद दिया। पाच आतंकवादी पूरे मुम्बर्इ को ही बधंक बना लिये और हमारे राजनेता को दुख इस बात का था कि इतने कम आदमी क्यों मरे? यह जनरल नालेज का प्रश्न भी हो सकता है बच्चों के लिये। ऐसा किस राजनेता ने कहा था?

अगर पूर्वी पाकिस्तान की कहानी मात्र बहत्तर घंटे में समेटी जा सकती है और निन्यान्बे हजार सैनिका का आत्मसर्मपण कराया जा सकता है, तो आप ही बतलार्इये आजाद कश्मीर को समेटने मे भारतीय सेना को कितना समय लगेगा ?बस थोडी देर के लिये राजनेता अपनी प्रेतछाया से देश को मुक्त कर दे, समस्या सुलझती नजर आयेगी। राजनेताओ से कुछ अर्ज करना चाहूगा - हूजूर वोट के अलावा, राष्ट्र नाम का भी कुछ अपने राष्ट में है। देश के सैनिको की लाशों पर दो फूल चढाने और उनकी विधवाओं को सिलार्इ मशीन देकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझने की आदतो से बाहर आकर इन आतंकवादीयों  को उनके अजांम तक पहुचाने की पहल करे। प्रत्येक नागरिक को सैन्य प्रशिक्षण अनिवार्य करे। और अपने लिये विशेष सैन्य प्रशिक्षण का प्रावधान करे। इसके आभाव में चुनाव लडने पर बैन करे। इस विश्वास के साथ कि राष्ट्र आपकी सुरक्षा करे, आप राष्ट्र की सुरक्षा करे। याद रखे - राष्ट्र जिन्दा रहेगा तभी हमारा वजूद जिन्दा रहेगा।

डा. अरविन्द कुमार सिंह

उदय प्रताप कालेज

वाराणसी

Monday, 2 April 2012

सच बात मान लिजिये, चहरे पे धूल है



सैन्य अधिकारियो को तैयार करने वाले, देहरादून के चिटवुड हाल की दिवाल पर तीन अति महत्वपूर्ण वाक्य लिखे हुये है। यह तीनो वाक्य भारतीय सेना में शामिल हो रहे युवा अधिकारियों के लिये है। यह वाक्य देश की सुरक्षा, सम्मान और कल्याण की गारन्टी बनता हे। आर्इये पहले इन वाक्यों को देखें फिर चर्चा को आगे बढाये - 

  • राष्ट्र की सुरक्षा, राष्ट्र का सम्मान, राष्ट्र का कल्याण सदैव प्रथम स्थान पर है। 


  • सैनिको की सुरक्षा, सैनिको का सम्मान, सैनिको का कल्याण द्वितीय स्थान पर है।


  • अपनी सुरक्षा, अपना सम्मान, अपना कल्याण सदैव अनितम स्थान पर है।

सेना ज्यादातर इन वाक्यों के करीब जीती है, यही कारण है, उसने सर्वोच्च आर्दश स्थापित किया है। विगत कुछ वर्षो से सेना के अन्र्तगत धीरे धीरे तीसरे वाक्य को प्रभावी होते हुये हम देख रहे हैं । और उसके परिणाम से पूरा देश प्रभावित हो रहा है। 

बोर्फोस तोप की चर्चा उसकी गुणवत्ता के लिये नही वरन उसकी खरीद में दी गयी दलाली के लिये ज्यादा हुयी। दलाली का नेट वर्क कितना मजबूत था, इसका अन्दाजा इसी बात से लगार्इये कि 64 करोड की दलाली में 256 करोड मात्र इसके दलाल का पता लगाने में खर्च हो गये। अन्ततोगत्वा सी बी आर्इ ने केस को बन्द करने की संस्तुति कर दी। 

इस पूरे प्रकरण से एक बात स्पष्ट है। एक ट्रार्इगिंल इन सबको नियन्त्रीत कर रहा है। एक छोर पर राजनितिज्ञ - दूसरे छोर पर आयुद्ध सामग्री बेचने वाले दलाल तथा तीसरे छोर पर सैन्य अधिकारी है। अब ये तो मानना ही पडेगा कि अभी तक इस ट्रार्इगिंल की जंजीर की कडिया काफी मजबूत है। एक भी नेटवर्क का आजतक पर्दाफाश नही हुआ। न किसी को  सजा हुयी। और ना ही सार्वजनिक तौर पर कभी दलाली से इन्कार किया गया।

ऐसा नही कि इस कडी को तोडने का प्रयास नही हुआ। पर जिसने आवाज उठायी उसका हश्र जानना ज्यादा दिलचस्प होगा। तहलका से सन्दर्भित तरूण तेजपाल ने भी जब जार्ज फर्नाडिज रक्षा मंत्री थे एक दलाली का पर्दाफाश किया था। और उन्होने इसकी किमत भी चुकार्इ। उनके उपर अनगिनत मुकदमें लाद दिये गये। मानसिक और शारीरिक प्रताडना के दौर से उन्हे गुजारा गया। शायद इन सबका अघोषित मकसद यह सन्देश देना था कि इस तरह की आवाज उठाना महगा पडेगा। बोर्फोस की दलाली प्रकरण हमेशा के लिये दफन हो गयी।

और अब थोडा वर्तमान प्रकरण। वर्तमान स्थल सेनाध्यक्ष ने सुप्रीम र्कोट मे मुकदमा किया, मेरी हार्इ स्कूल की जन्मतिथी के अनुरूप सेना में मेरी जन्मतिथी नही लिखी है।सेना ज्वार्इन करते वक्त 1950 दर्ज कर दिया गया जबकि हार्इस्कूल प्रमाणपत्र में 1951 है। इस पूरे प्रकरण को दो एंगिल से देखा जा सकता है। पहला एंगिल सेनाध्यक्ष के नजरिये से - जिन्हे एक साल की समयाअवधि नौकरी के लिये और मिलती। तथा दूसरा एंगिल 1950 से 1951 के बीच नये बनने वाले स्थल सेनाध्यक्ष के रूप में देखा जा सकता है।

सुप्रीम र्कोट द्वारा 1950 जन्मतिथी मानने की सिथति में , निश्चित ही इससे जिसको फायदा हुआ होगा, वह खुश हुआ होगा। यहा वर्तमान सेनाध्यक्ष की उस बात को उद्धृरित करना चाहूगा। जब उन्होने कहा था कि मुझे रिश्वत की पेशकश की गयी थी। पेशकश करने वाले ने एक महत्वपूर्ण बात उनसे कहा था। आप के पहले भी लोग लेते रहे है, आप भी लिजिये और आगे भी लोग लेते रहेगें। क्या इसका यह अर्थ भी निकल सकता है कि देश के इस सर्वोच्च पद की नियुक्ती में दलालो की भी महत्वपूर्ण भूमिका है?

इतना तो मानना पडेगा, जनरल सिंह द्वारा प्रधानमंत्री को पत्र लिखना, सी बी आर्इ को दलाली प्रकरण पर जाच हेतु पत्र लिखना, यह दर्शाता है कि सबकुछ ठीक नही चल रहा है। राजनेता, दलाल और सेनाध्यक्ष में, सेनाध्यक्ष ने मुह खोला है। इसे र्इमानदार पहल के रूप में देखा जा सकता है। सरकार को एक मौका मिला है, इसकी तह तक जाने का। इस सन्र्दभ में इतनी कठोर कार्यवायी होनी चाहिये कि गलत कार्य करने वालो को इससे सबक मिले। अगर ऐसा हुआ तो राष्ट्र गौरवान्वीत होगा तथा गददारो को उनके अंजाम तक पहुचाने में मदद मिलेगी। 

वर्तमान राजनितिक चरित्र अपने दोहरेपन के कारण इस सन्दर्भ में देश का विश्वास अर्जित करने में विफल दिखार्इ दे रहा है। विश्वास नही होता तो कुछ बानगी देखिए -

  • वर्तमान केनिद्रय सरकार द्वारा बेअन्त कौर के हत्यारे की फासी पर रोक।


  • उडीसा विधान सभा द्वारा राजीव गाधी के हत्यारेा की सजा माफी पर प्रस्ताव पारित।


  • जम्मू कश्मीर विधान सभा द्वारा अफजल गुरू की फासी की सजा माफी प्रस्ताव पारित।


  • पंजाब विधान सभा द्वारा भुल्लर की फासी की सजा माफ करने का प्रस्ताव पारित।

यह सब तो कुछ भी नही है। आज राजनैतिक शुचिता की आवाज उठाने वाले अन्ना हजारे को संसद मे मुल्जीम की तरह पेश किया जाय ऐसा भी कुछ सांसद चाहते है। ऐसा चाहने वाले कभी रक्षा सौदे के दलालो को भी जेल के पीछे भेजने की हिम्मत जुटायेगें? हिम्मत शब्द इस लिये कि भारत माता को डायन कहने वाले के प्रति इनकी हिम्मत देश देख चुका है। अपने रक्षा मंत्री काल में सेना में आरक्षण खेजने वाले से हम और क्या आशा करे?आने वाले वक्त में , इस विन्दू पर संसद कहा है यह देखने वाली बात होगी। स्थल सेनाध्यक्ष की बरखास्तगी या फिर रक्षा सौदो के दलालो को सजा? 

भ्रष्टाचार के बरखिलाफ जनरल सिंह की यह मुहिम किसी अंजाम तक अवश्य पहुचनी चाहिये। मैं रक्षा मंत्री की बातो से सौ प्रतिशत सहमत हू कि पत्र लीक करने वाला गददार है। लेकिन उससे भी बडा गददार वो होगा जो इस सारे प्रकरण पर लिपा पोती करेगा। 

प्रधानमंत्री जी की र्इमानदारी भारी पडने लगी है देश को। यह र्इमानदारी सिर्फ दिखार्इ देती है। कुछ करती नहीं। कलमाडी, राजा और अब सेना। आखिर देश के राजनेता अपनी जिम्मेदारी कब स्वीकारेगें? इन्हे कब समझ में आयेगा राष्ट्र के उपर कोर्इ नही।

सच बात मान लिजिये, चेहरे पे धूल है

इल्जाम आर्इनो पे लगाना फिजूल है।।



डा. अरविन्द कुमार सिंह

वाराणसी

Monday, 13 February 2012

ग्रुप कंमाडर ने किया शिविर का निरीक्षण


ग्रुप कंमाडर ने किया शिविर का निरीक्षण

वाराणसी 13 फरवरी। अ्रगसेन कन्या महाविधालय, परमानन्दपुर में चल रहे 100 वी बटालियन के संयुक्त वर्षिक प्रशिक्षण शिविर का वाराणसी बी ग्रुप के ग्रुप कंमाडर, ग्रुप कैप्टन एस.वी काटे नें निरीक्षण किया। शिविर आगमन के उपरान्त कैडेटो ने आपको गार्ड आफ आनर दिया। इसके उपरान्त कैम्प कंमान्डेन्ट कर्नल प्रफुल्ल कुमार सिंह ने आपको शिविर की गतिविधयों की जानकारी दी तथा शिविर का निरीक्षण करवाया। इस अवसर पर आपने समस्त एनसीसी अधिकारियो एवं पीआर्इ स्टाफ से भेट की। इस अवसर पर आपके साथ वाराणसी बी ग्रुप के ट्रेनिंग आफिसर ले. कर्नल धर्मेन्द्र सिंह यादव एवं शिविर के डिप्टी कैम्प कंमाडेट कर्नल ए.धवन उपसिथत थे।

इसके पूर्व प्रात:काल कर्नल पी.के. सिंह ने उदघाटन सत्र के अवसर पर बोलते हुये कैडेटो से सतत जागरूक रहने का आहवाहन किया। नागरिक सुरक्षा का दायित्व समझाते हुये आपने कहा -'' अधिकार बोध अच्छी चीज है, पर इसका र्निवहन राष्ट्र् को मजबूत एवं गरिमामय बनाता है। इसका हमें सतत ख्याल रखना चाहिये। आपने आगे बतलाया कि -'' प्रशिक्षण शिविर का मुख्य उददेश्य ब एवं स प्रमाणपत्र की परीक्षा की तैयारी है। इस अवसर पर मेजर हेतराम कछवाहा, कैप्टन ओ.पी सिंह, पी. के सिंह, लेफिटीनेन्ट प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ए वं सूबेदार मेजर दया चंद उपसिथत थे। ट्रेनिंग आफिसर मेजर अरविन्द कुमार सिंह की सूचना के अनुसार आज प्रात:काल आठ बजे से अधिकारियों एवं कैडेटो द्वारा रक्तदान किया जायेगा।

                                                           

Saturday, 11 February 2012

व्यथा पत्र

 



व्यथा पत्र-
शहीद इन्स्पेक्टर मोहन शर्मा.., 
आपके जज्बे को हम करोडो देशप्रेमी भारतीय सलाम करते हैं .
आपने २००८ में इन्डियन मुजाहिदीन के आतंकवादियों से मुठभेड़ की और वीरगति को प्राप्त हो गये.
आप जैसे जाबांजो के कारण माँ भारती अपनी शान बनाए रख पाती है .............लेकिन माँ भारती की
शान को कम करते हैं हमारे ही देश के कु-नेता. वो भी रोते हैं उनकी नेता भी फुट-फुटकर रोती है मगर 
आपके लिए नहीं शहीद मोहन चंद शर्मा, क्योंकि आपके लिए रोने से उन्हें सत्ता नहीं मिल पाती वो तो
देश के दुश्मनोंके लिए रोते हैं, माँ भारती की अस्मिता से खिलवाड़ करने वाले गद्दारों की मौत पर मातम
मनाते हैं.ये तथाकथित सेक्युलर दरिन्दे जो बड़ी शान से कहते हैं की आतंकवादी तो आतंवादी होता है
उसकी कोई जाती नहीं होती,उसका कोई धर्म नहीं होता, मगर.........ये सब कहने के लिए है असलियत
में ये लोग ही सबसे बड़े सांप्रदायिक हैं.ये लोग मानवता की पूजा नहीं करते,ये लोग आतंक फैलाने वालो 
का पक्ष लेते हैं, इस देश में आप जैसे बहादुर इन्स्पेक्टर के लिए सिर्फ जांच आयोग बनाया जाता है की
आपने वोट बैंक पर हाथ क्यों डाला? राष्ट्र रक्षा की बातें इनके लिए कोई मायने नहीं रखती.  
..........आतंकवादी को मुस्लिम ,हिन्दू या इसाई मानने वाले नेता हम सभी को बरगलाते हैं.मजहब नहीं 
सिखाता आपस में बैर करना. मगर संकीर्ण सोच के नेता सिखाते हैं की अमन चैन को नष्ट करने वाला 
भी जाती रखता है. देश की शांति को नष्ट करने वालो की पूजा करते हैं वोट के लालची नेता .देश में 
निर्दोष लोगो का खून बहाने वाले की लाश के पास बैठकर मातम मनाने वाले दरिन्दे पुरे अवाम को गलत
सन्देश देते हैं, उनके हाथों में फूल हैं मगर वे फूल तेरे लिए नहीं है शहीद ! वे फूल लेकर उन कब्रों की
और जा रहे हैं जहाँ देश के दुश्मनों को आपने चिर निद्रा में सुलाया था.
इनके होसले भी देखो शहीद ! दिन दहाड़े गर्व से खड़े होकर देश द्रोह की बाते कह जाते हैं और आप जैसे 
शहीदों पर कीचड़ उछाल जाते हैं क्योंकि ये जो कुछ भी बयान करते हैं उसे कानून सम्मत ही मानते हैं.
इन्हें आप जैसे बहादुर सपूतों की विधवाओं पर दया नहीं है ,रहम नहीं है इन्हें रहम है देश द्रोहियों की 
लाशो से .इनके पास आपकी वीरता को बखान करने के लिए शब्द नहीं है मगर इनके पास दुआओं का 
अम्बार है देश में आतंक मचाने वाले दरिंदो के लिए .
मगर व्यथित मत होना शहीद ये सब सुनकर क्योंकि इन ढोंगी लोगो के पाप का घड़ा भी एक दिन 
फूटेगा .हम भारतीय तुम्हारे बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे. तुम करोडो भारतीयों के गर्व का कारण 
हो ,आपका बलिदान हमें सदैव यह सन्देश देता रहेगा की हम जागरूक रहकर ,अपने मत का प्रयोग 
करके गिरगिट नेताओ को उनकी सही जगह बता देंगे .
                                     जय-हिंद        
                      शहीद इन्स्पेक्टर मोहन शर्मा (परिचय)
वर्ष 2008 में दिल्ली के जामिया नगर इलाक़े में दिल्ली पुलिस के साथ मुठभेड़ में आतिफ़ अमीन और
मोहम्मद साजिद मारे गए थे, जबकि मोहम्मद सैफ़ और जीशान को गिरफ़्तार कर लिया गयाथा.
दिल्ली पुलिस इन्हें इंडियन मुजाहिदीन का सदस्य मानती है. आतिफ़ अमीन और मोहम्मद साजिद 
आज़मगढ़ के रहने वाले थे. इस मुठभेड़ में दिल्ली पुलिस के इंस्पेक्टर मोहन चंद शर्मा भी मारे
गए थे.

आतंकवादियों के लिए आंसू बहाते नेता

 


जो लोग देश के साथ गद्दारी करते हैं ,देश में उत्पात मचाते हैं ,आतंकवाद फैलाते हैं ,उनके लिए 
कांग्रेस अध्यक्ष रोती है ,जो जवान देश के दुश्मनों से अपनी जान की बाजी लगाकर संघर्ष करते 
हैं उनको लिए जांच बैठा दी जाती है ...कैसी राजनीती हो गयी है ...क्या करोडो हिन्दुस्थानियो 
में कोई देशप्रेमी  नेता ही नहीं बचा है ,क्या सब के सब वोटो के दीवाने हो गए हैं ?
हे देश वासियों ,क्या ऐसे लोगो के पक्ष में मतदान करके आप देश के साथ धोखा नहीं कर रहे हैं ?
देश का गृहमंत्री कहते हैं की बाटला काण्ड का एनकाउन्टर सही था मगर कानून मंत्री कहते हैं 
की वे तो आतंक फैलाने वाले नहीं थे ..!! उनको मारने से सोनिया रोई ...!!..कैसी सरकार ..!!!
किसकी बात सही माने हिंदुस्थानी !!!
अगर आतंकवादी को मारने के पर किसी जवान पर जांच बैठाई जाए तो कौन जवान देश के 
लिए शहीद होगा ?क्योंकि दुश्मनों को मारने से हमारे देश के नेता रो पड़ते हैं !!!देश को अस्थिर 
करने वाले लोग यदि किसी कौम विशेष के आतंकवादी हैं तो हमारे अभागे नेता उनके पक्ष में 
आ जाते हैं क्योंकि उसके पास भी एक वोट हैं और हमारे बेशर्म नेता उस एक वोट के लिए 
देश  को भारत माता के चीर को तार-तार होते देखते हैं    ..........  !!
यह देश का ख़राब समय है की इस देश पर वोटो के लालची ,झूठे,देश हित से परहेज करने वाले 
लोग शासन कर रहे हैं .क्या लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ वोट ही रह गया है ?
जब तक देशवासी सोते रहेंगे तब तक ऐसा ही चलेगा .जवान गोलियों का शिकार होते रहेंगे 
उनकी (औरतें)विधवा रोती रहेगी ,उनके बच्चे बहादुर बाप की लाश पर बिलखते रहेंगे और 
हमारे शासक उनकी लाशो पर भी राजनीती करते रहेंगे. 
क्या अब भी सहन करते रहेंगे .....जिस बस्ती के लोग गूंगे और बहरे हो जाते हैं उस बस्ती का 
नामोनाशान मिट जाया करता है ......अपने देश प्रेम के जज्बे को जिन्दा रखिये .यह सुभाष ,
आजाद,भगत का देश है ,यह बिस्मिल का देश है ,यह विवेकानंद की भूमि है ,यह शिवाजी की 
आन है ,यह प्रताप की शान है .इस भूमि को नापाक इरादे वाले नापाक लोगों से बचाना हम 
सब का काम है इसे अकेले अन्ना पर मत छोड़ दीजिये,इसे अकेले स्वामी पर मत छोड़ 
दीजिये ...........

Friday, 10 February 2012

ब्राह्मणों की हत्‍या के लिए यदुवंशी ने क्षत्रिय को उकसाया था!

गीता पर उठाये गये हालिया विवाद पर उच्च न्यायालय में कार्यवाही के दौरान की बातों पर गौर करें। याची के वकील को न्यायाधीश ने तीन सप्ताह का समय केवल इस बात के लिए दिया कि वो पहले गीता को पढ़ें और उसमें उल्लिखित किन-किन बातों पर आपत्ति है, उसका विवरण प्रस्तुत करें। पहले ही सुनवाई के दौरान अधिवक्ता ने ईमानदारी से स्वीकार किया कि उसने ‘गीता’ पढ़ा नहीं है।
और तीन सप्ताह के बाद अगली तारीख पर उसी विद्वान अधिवक्ता ने उसी तरह की ईमानदारी का परिचय देते हुए साफ तौर पर यह स्वीकार किया कि उन्होंने न्यायालय के आदेश पर गीता पढ़ तो जरूर लिया लेकिन समझा बिलकुल नहीं। और अंततः उनकी याचिका खारिज कर दी गयी। बात केवल गीता का ही नहीं है। अगर आप गौर करेंगे तो पाएंगे कि भारतीय संस्कृति से संबंधित हर फैसले में न्यायालय ने अपने नीर-क्षीर विवेक का परिचय देते हुए ऐसा ही फैसला दिया है। चाहे मामला राम जन्मभूमि का हो, धारा 370 का, सामान नागरिक आचार संहिता, आईएमडीटी एक्ट का विरोध कर बंगलादेशी घुसपैठियों को निकाल बाहर करने का, अमरनाथ श्राइन बोर्ड, सेतु समुद्रम, गोहत्या निषेध समेत हर विषय को विभिन्न सक्षम न्यायालयों ने हिंदुत्व या यूं कहें कि संघ, विहिप, भाजपा आदि के पक्ष को सही माना है। तो हम अपने न्यायालय या संविधान की सुनें या गीता विरोधी उचक्कों का, ये फैसला हमें करना होगा।
तो मुकदमा में जज ने क्या कहा, गीता में क्या कहा गया है, अभी तक के तमाम देशी-विदेशी विद्वानों ने गीता के बारे में क्या-क्या कहा है। शंकराचार्य, गांधी, विनोवा प्रभृति महामानवों ने किस तरह गीता की बातों का भाष्य करने, उसका सरल अर्थ प्रस्तुत करने, उसी अनुसार अपने जीवन की दिशा का निर्धारण करने में किस तरह अपना जीवन समर्पित कर दिया यह संदर्भ देना भी यहां भैंस के आगे बीन बजाना ही होगा। चूंकि यहां भगवान कृष्ण और गीता के लिए (पेरियार के बहाने) ‘सड़क पर चप्पल मारने’ जैसा शब्द इस्तेमाल किया गया है तो ये भी कहना होगा कि उन चीजों का अध्ययन करने के लिए इन लोगों को कहना या वो सब उद्धृत करना, सूअर को मिठाई खिलाने की कोशिश जैसा ही होगा। खैर…
बस, संदर्भवश केवल इतना उल्लेख करना पर्याप्त होगा कि आखिर गीता का उद्धरण तो साम्यवादियों के लिए भी मुफीद होता अगर उसे इन लोगों ने ब्राह्मणवादी ग्रंथ न घोषित कर दिया होता। आखिर युद्धरत दो गुटों में से एक अर्जुन को धर्मयुद्ध (आप हिंसा कह लीजिए) के लिए प्रेरित करने (उकसाने) के लिए ही तो यह अठारह अध्याय सुनाया गया था। कुत्ते-बिल्ली की तरह लड़ने और कुछ टुकड़े के लिए लोगों को लड़ा कर इस धरती को नर्क बना देने वाले वामपंथियों-जातिवादियों को तो मार्क्स से अच्छा उद्धरण इनमें मिल सकता था। वो तो यहां भी ‘वर्ग संघर्ष’ जैसी स्थितियों को तलाश ही सकते थे। लेकिन उनकी मुश्किल यह है कि गीता में ‘सत्य और असत्य’ के रूप में दो वर्गों का वर्णन किया गया है, न कि संपत्ति (या उनके सुविधा अनुसार जाति, संप्रदाय) आदि किसी अन्य रूप में। बस गीता में अंतर्निहित सत्य की यही ताकत इन्हें दुम दबा कर भागने को विवश करती है। और चूंकि इस सभ्य देश में इनकी जुबान हलक में ही रहने देने की गारंटी है, तो कम से कम हिंदुओं के बारे में कुछ भी कहते रहना इन्हें रास आता है। वरना कुरआन में क्या-क्या कहा गया है, उसके लिए वैसा असभ्य शब्द इस्तेमाल कर के देखें, अपनी औकात का पता चल जाए इन लोगों को तो।
जहां तक जाति आदि का सवाल है तो यह जानना दिलचस्प होगा कि कौरव पक्ष की तरफ ही तो द्रोणाचार्य और कृपाचार्य आदि के रूप में कई ब्राह्मण खड़े थे, जिन्हें मारने के लिए ‘क्षत्रिय’ अर्जुन को ‘यदुवंशी’ कृष्ण प्रेरित कर रहे थे। यह भी साथ ही पढ़ लीजिए कि रामायण में भी ‘ब्राह्मण’ रावण का ही संहार ‘क्षत्रिय’ राम ने किया था। लेकिन कहां इस आधार पर ब्राह्मण और राजपूतों या अन्य जातियों के बीच में किसी तरह का कोई जाति विभाजन हो गया? यह तो इस महान संस्कृति की सफलता ही मानी जानी चाहिए कि आज भी राम और कृष्ण का पूजन इन लोगों द्वारा ब्राह्मणवाद कहा जाता है। चूंकि यह प्रतिक्रया में लिखा गया लेख है, अतः यह भी साथ ही वर्णित करना जरूरी है कि आज भाजपा के मुख्यमंत्रियों में भी सभी गैर ब्राह्मण ही हैं। यह तो भला हो उस राम-जन्मभूमि आंदोलन का, जिसके कारण उचक्कों द्वारा नाहक जाति के आधार पर टुकड़े-टुकड़े में बांट दिये गये समूहों का एक हिंदुत्व की छतरी तले आना संभव हुआ था। नहीं तो आरक्षण के नाम पर तो किलों-कबीलों में देश को बांट देने में कोई कसर नहीं रख छोड़ा था इन समूहों ने। खैर…
सभी विचारों के प्रति सहिष्णु एकमात्र इस हिंदू संस्कृति की खासियत है कि वह देश, काल और परिस्थिति के अनुसार उसी तरह बदलता है जिस तरह भगवान विष्णु विभिन्न युगों में अलग-अलग रूप में अवतार लेते हैं। यह इसी संस्कृति की खासियत है कि वह विदेशी मजहब की तरह कभी चौदहवीं सदी में पैदा हुए विचार को आज भी उसी रूप में मानना गंवारा नहीं करता। अतः अगर मनुस्मृति या किसी और ग्रंथ में वर्णित कोई बात युगानुकूल नहीं लगी तो उसे विनम्रता से बदल देना, कोई गलती हो जाने को मानव स्वाभाव का हिस्सा मान उसके लिए खेद भी प्रकट करते रहना इस संस्कृति में ही तो संभव है। इस सहज-स्वाभाविक विनम्रता को ‘राजनीति’ समझने वाले तत्वों को बेनकाब करने की जरूरत है।
तटस्थ लोग कृपया गौर करें। पौराणिक सनातन मान्यता भी यह कहता है कि विवाह एक संस्कार है और उसका एकमेव ध्येय संतानोत्पति कर वंश बढ़ाना होता है। इस निमित्त वह अगर जरूरी हुआ, तो बहु-विवाह को भी मान्य करता था। लेकिन जब हमने अपना संविधान बनाया तो स्त्री-पुरुषों को समान दर्जा देते हुए एक से अधिक विवाह को प्रतिबंधित किया। तमाम बहुसंख्यक हिंदू समाज ने उसे स्वीकार भी किया। इसी तरह छुआछूत को आज भी हम सब एक स्वर में निंदनीय मानते हैं और जब भी कभी ऐसी व्यवस्था थी या अभी भी है, तो उस पर खुलेआम लानत भेजते हैं। बाल विवाह, सती प्रथा आदि पर भी दृढ़ता से रोक लगा कर विधवा विवाह आदि को लगभग मान्य कर देना आज के युग में संभव हुआ है। इसके उलट मुस्लिमों ने अपनी उन्हीं मध्ययुगीन मान्यताओं पर अड़े रहना मुनासिब समझा और आज भी वहां चार विवाह तक करने की कानूनी मान्यता समेत अन्य तमाम ऐसे मानवता विरोधी, युग विरोधी कानून कायम हैं, जिसके कारण शाहबानो की न्यायालय द्वारा दी गयी रोटी भी छीन ली जाती है।
तो हिंदुत्व जैसे सहिष्णु और युग अनुसार खुद को बदलते रहने वाले जीवन दर्शन को निंदनीय मानने वाले लेकिन कट्टर समूहों के लिए दो शब्द भी निकालने में जुबान खींच लिये जाने का अभिव्यक्ति का खतरा मोल नहीं लेने वालों ऐसे तत्वों का ज्यादा परवाह करने की जरूरत नहीं है। चूंकि इस जीवन दर्शन में रुदालियों के लिए भी पर्याप्त जगह है। भैरव के रूप में हम कुत्ते को भी कुछ पत्र-पुष्प समर्पित कर ही देते हैं, तो इन गीता-गंगा-गाय विरोधियों को भी कायम रहने देना होगा। यही वायरस हमें हर वक्त प्रतिरोधी वायरस पैदा करते रहने की ताकत देते हैं। हममें इतना नैतिक साहस कायम है कि हम पूर्वजों की किसी गलत कामों का भी विरोध कर सकें। जाति-संप्रदाय आदि आधारित छुआछूत समेत अन्य तमाम भेद-भाव को छोड़ कर एक नये समरस समाज बनाने हेतु हिंदुत्व का यह सनातन जीवन पद्धति गोरियों, गजनबियों, गीता-गंगा-गाय विरोधियों के बावजूद बदस्तूर कायम रहेगा।
चूंकि इन तमाम मुद्दों को बेजा रूप से राजनीति के चश्मे से देखने की कोशिश की गयी है, तो ये भी कहना होगा कि रुदालियां छाती पीटते रहें भाजपा अभी 116 है, कल 270 होगी। अभी आधे दर्जन से अधिक राज्यों में सत्तासीन है, कल दो दर्जन राज्यों में होगी। आज एकमात्र प्रासंगिक विपक्ष है, कल लाल किले के प्राचीर पर भी होगी। और हर मोहल्ले में तब भी कुछ विदूषक इसी तरह कायम रहेंगे, जैसे अभी हैं। आखिर मनोरंजन भी हर एक फ्रेंड की तरह जरूरी होता है यार। कुछ जोकरों को सुधारने की कोशिश करने के के बजाय उनके हाल पर ही छोड़ देना श्रेयष्कर होता है। बाबा तुलसी ने पहले ही कहा है…
फूलहि-फलहि न बेंत, जदपि सुधा वरसहि जलद
मूरख मनहि न चेत, जौं गुरु मिलहि विरंची सम
(पंकज झा। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में मास्टर डिग्री लेनेवाले पंकज झा वर्तमान में छत्तीसगढ़ भाजपा के मुखपत्र दीपकमल के संपादक हैं। इसके साथ ही वे विभिन्न अखबारों और पत्रिकाओं के लिए मुक्त लेखन भी करते हैं। उनसे jay7feb@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।

दंगो में हिन्दू औरत का बलात्कार अपराध नहीं माना जायेगा .........!!!

दंगो में हिन्दू औरत का बलात्कार अपराध नहीं माना जायेगा .........!!!

सोनिया गाँधी के “निजी मनोरंजन क्लब” यानी नेशनल एडवायज़री काउंसिल (NAC) द्वारा सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार किया गया है जिसके प्रमुख बिन्दु इस प्रकार हैं-

1) कानून-व्यवस्था का मामला राज्य सरकार का है, लेकिन इस बिल के अनुसार यदि केन्द्र को “महसूस” होता है तो वह साम्प्रदायिक दंगों की तीव्रता के अनुसार राज्य सरकार के कामकाज में हस्तक्षेप कर सकता है और उसे बर्खास्त कर सकता है…

(इसका मोटा अर्थ यह है कि यदि 100-200 कांग्रेसी अथवा 100-50 जेहादी तत्व किसी राज्य में दंगा फ़ैला दें तो राज्य सरकार की बर्खास्तगी आसानी से की जा सकेगी)…

2) इस प्रस्तावित विधेयक के अनुसार दंगा हमेशा “बहुसंख्यकों” द्वारा ही फ़ैलाया जाता है, जबकि “अल्पसंख्यक” हमेशा हिंसा का लक्ष्य होते हैं…

3) यदि दंगों के दौरान किसी “अल्पसंख्यक” महिला से बलात्कार होता है तो इस बिल में कड़े प्रावधान हैं, जबकि “बहुसंख्यक” वर्ग की महिला का बलात्कार होने की दशा में इस कानून में कुछ नहीं है…

4) किसी विशेष समुदाय (यानी अल्पसंख्यकों) के खिलाफ़ “घृणा अभियान” चलाना भी दण्डनीय अपराध है (फ़ेसबुक, ट्वीट और ब्लॉग भी शामिल)…

5) “अल्पसंख्यक समुदाय” के किसी सदस्य को इस कानून के तहत सजा नहीं दी जा सकती यदि उसने बहुसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ़ दंगा अपराध किया है (क्योंकि कानून में पहले ही मान लिया गया है कि सिर्फ़ “बहुसंख्यक समुदाय” ही हिंसक और आक्रामक होता है, जबकि अल्पसंख्यक तो अपनी आत्मरक्षा कर रहा है)…

इस विधेयक के तमाम बिन्दुओं का ड्राफ़्ट तैयार किया है, सोनिया गाँधी की “किचन कैबिनेट” के सुपर-सेकुलर सदस्यों एवं अण्णा को कठपुतली बनाकर नचाने वाले IAS व NGO गैंग के टट्टुओं ने… इस बिल की ड्राफ़्टिंग कमेटी के सदस्यों के नाम पढ़कर ही आप समझ जाएंगे कि यह बिल “क्यों”, “किसलिये” और “किसको लक्ष्य बनाकर” तैयार किया गया है…। “माननीय”(?) सदस्यों के नाम इस प्रकार हैं – हर्ष मंदर, अरुणा रॉय, तीस्ता सीतलवाड, राम पुनियानी, जॉन दयाल, शबनम हाशमी, सैयद शहाबुद्दीन… यानी सब के सब एक नम्बर के “छँटे हुए” सेकुलर… । “वे” तो सिद्ध कर ही देंगे कि “बहुसंख्यक समुदाय” ही हमलावर होता है और बलात्कारी भी…

अब यह विधेयक संसद में रखा जाएगा, फ़िर स्थायी समिति के पास जाएगा, तथा अगले लोकसभा चुनाव के ठीक पहले इसे पास किया जाएगा, ताकि मुस्लिम वोटों की फ़सल काटी जा सके तथा भाजपा की राज्य सरकारों पर बर्खास्तगी की तलवार टांगी जा सके…। यह बिल लोकसभा में पास हो ही जाएगा, क्योंकि भाजपा(शायद) के अलावा कोई और पार्टी इसका विरोध नहीं करेगी…। जो बन पड़े उखाड़ लो…

By...................Suresh Chiplunkar

सरफ़रोशी की तमन्ना




एक देशभक्त और एक देशद्रोही .. किसी भी सूरत में आप इन दोनों की तुलना एक दुसरे से नहीं कर सकते ... पर भारत सरकार कर सकती है ... इनके नाम से दिल्ली में सड़क का नाम रखने जा रही है भारत सरकार माननीय शोभा सिंह जी ने ऐसे कौन सा देश भक्ति का काम किया था हाँ देश के साथ गद्दारी ज़रूर की थी इस फोटो को इतना शेयर कीजिये की हर हिन्दुस्तानी जान सके ..!जय माँ भारती ...........

Thursday, 9 February 2012

आखिर आप कब बोलेगें

वर्तमान राजनिति की दिशा और दशा कही से ये आभास नही देती की वो राष्ट्रीय सोच की दिशा में काम करती है। राजनैतिक दल उस प्राइवेट फर्म की तरह काम कर रहे है, जिनकी सोच मात्र व्यकितगत फायदे तक सिमित है।

राष्ट्रीय नेता ( तथा कथित ) राष्ट्रीय मसलो पर सकारात्मक भाषा की जगह नकारात्मक रवैया अपनाये हुये हे। इन नेताओं ने मसलो के समाधान पर कभी बोला हो ऐसा मुझे याद नही। चाहे वो काला धन हो, भ्रष्टाचार हो, साम्प्रदायिकता हो, या फिर क्षेत्रिय विवाद हो।

चलिये इनको माफ किया जा सकता है, ये किसी पार्टी के नुमाइन्दे है। उससे आगे इनकी सोच नही जा सकती हैं। लेकिन क्या देश का प्रधानमंत्री भी यह व्यवहार राष्ट्र के साथ कर सकता है? लगता है श्री मनमोहन सिंह ने मौन व्रत धारण कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 122 लाइसेंस निरस्त किया। पूरा राष्ट्र अपेक्षा कर रहा था कि हमारे प्रधानमंत्री जी इस पर कुछ बोलेगें। अब सवाल ये उठता है आखिर वो क्यों बोले? वो इस लिये बोले कि सरकार की सोच इस दिशा में क्या है? लेकिन उन्हे नही बोलना था सो नही बोले। भरतिय संविधान में न बोलने पर कोर्इ सजा मुकर्रर नही है। लेकिन उसी भारतिय संविधान के तहद मुझे बोलने का अधिकार मिला है और उसे लिखने के माध्यम से मैं व्यक्त कर रहा हू।

बडे साहब के रिटायरमेंट की पार्टी थी। छोटे साहब परेशान थे। कल से उन्हे आफिस का संचालन करना था। आखिरकार सारी झिझक छोडकर वो बडे साहब के पास गये और कहा -'' आपसे मै कुछ सिखने आया हू। कृपया आफिस संचालन के सन्दर्भ में मुझे कुछ बतलाने की कृपा करें । बडे साहब ने कहा - '' मुझे पता था आप आयेगें। मैने दो लिफाफे बनाकर आलमारी में रख दिया है। जब कभी मुसीबत में पडना क्रमश: एक एक लिफाफे को खोलना। तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायेगा । छोटे साहब चौकें - दो लिफाफे में पूरी नौकरी? इतना आसान नौकरी करना? खुश हुये, राहत की सास ली और पार्टी समाप्त हुयी।

कुछ वर्षो के बाद छोटे साहब एक बडी मुसीबत में फसे। काफी परेशान थे। तभी उन्हे लिफाफे की याद आयी फौरन आलमारी से पहले नम्बर का लिफाफा निकाला तथा उसे खोला। उसमें लिखा था अपनी सारी गलती नीचे वाले पर डाल दो और साहब ने य ही किया। देखिये कितनी समानता है, काग्रेस ने भी य ही किया। कपिल सिब्बल ने भी य ही कहा -2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में भाजपा की पिछली सरकार की नितियों की गलती थी।

लेकिन ये कहानी अभी पूरी नही हुयी है। उस वक्त तो साहब मुसीबत से बरी हो गये। लेकिन कुछ वर्षो के बाद वो पुन: एक मुसीबत में जा फसें। काफी परेशान थे तभी उन्हे दूसरे लिफाफे की याद आयी फौरन आलमारी से लिफाफा निकाला और खोला - उसमें लिखा था - अब तुम भी दो लिफाफे बनाने की तैयारी करो। क्या अर्थ हुआ - बहाने और लिफाफो से नौकरिया नही चला करती, समस्याओं का समाधान चाहिये। लेकिन जो ख्ुाद समस्या हो वो समाधान कैसे निकालेगा? अपने ही लिये सांसद लोकपाल बील पारित कैसे करेगा? अपने ही विदेशो में जमा काले धन के लिये कोर्इ कठोर नियम कैसे बनायेगा? फिर वो चुप नही रहेगा तो आखिर क्या करेगा? लेकिन ऐसी हरकतो से राष्ट्र मजबूत नही हुआ करता, उसका विकास नही होता।

हो सकता है आज्ञाकारिता ( शायद - चापलूसी ) इसकी एक वजह हो? ठीक उस वायुयान चालक की तरह, जिसका किस्सा अब मैं आपको सुनाने जा रहा हू - 

ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी। वायुयान चालक बहुत खुश था। आज उसकी वर्षो की साधना पूरी हुयी थी। मुख्य समारोह आयोजित था। उसने अपने पूरे परिवार को आमंत्रित किया था। उसने अपनी मा से कहा कि - इस अवसर पर मै आप सबको वायुयान में आकाश में भ्रमण कराउगा तथा आप सबको अपना कौशल दिखाउगा। मा ने कहा - बेटा वो सब तो ठीक है पर एक बात मैं तुम्हे कहना चाहूगी। बचपन में तू बाते बहुत किया करता था जिससे कर्इ कार्य बिगड जाया करते थे। यह गम्भीर कार्य है अत: इस बात का ख्याल रखना। वायुयान संचालन के वक्त कम बाते करना।

वायुयान चालक ने पूरे परिवार को आकाश में खूब भ्रमण कराया। कुशल संचालन के बाद वो वायुयान को नीचे एयर पटटी पर वापस लाया तथा अपने वायुयान संचालन की कुशलता के लिये अपनी मा से पूछा। मा ने उसकी बहुत तारीफ की। तारीफ से गदगद बेटे ने कहा - '' इतना ही नही मा, मैने आपकी बातो का भी ख्याल रख्खा था। पिता जी वायुयान से नीचे गिर गये, क्या मैं कुछ बोला? भर्इया गिर गया, बहन गिर गयी क्या मैं कुछ बोला? मा , यह सब सुनकर हतप्रभ रह गयी। क्या मैने इन्ही अर्थो में यह बात कही थी?

1 लाख 76 हजार करोड का 2जी स्पैक्ट्रम घोटालादेश में हो गया, प्रधानमंत्री जी कहते है क्या मैं कुछ बोला? 122 लाइसेंस सुप्रीम कोर्ट द्वारा रदद कर दिये गये क्या मैं कुछ बोला? काला धन विदेशो से वापस आयेगा या नही, क्या मैं कुछ बोला? कालमाडी, राजा जेल चले गये, क्या मैं कुछ बोला? मुम्बर्इ बम ब्लास्ट हो गया, क्या मैं कुछ बोला? और बोला भी तो क्या बोला? सब आन रिकार्ड है। उनमें समस्या का समाधान नही, राजनित की चालाकिया हंै। आदरणीय प्रधानमंत्री जी, सोनीया जी तथा देश के समस्त राजनितिक पार्टीयों के सम्मानित नेतागण आप सभी से पूरी विनम्रता से कहना चाहूगा - राजनितिक चालाकियों से राष्ट्र का भला नही हुआ करता है, यह कृत्य राष्ट्र के प्रति विश्वासघात है।

अजीब विडम्बना है, देश की, कोर्इ ब्लात्कार से पिडीत को नौकरी देने की वकालत कर रहा है, तो कोर्इ काले धन के प्रश्न पर काले झण्डे की बात कर रहा है तो किसी को भ्रष्टाचार की समापित कुशवाहा जैसे व्यकित को पार्टी में शामिल करने में दिखार्इ दे रहा है। ये हमारे देश के कर्णधार है। कल हिन्दूस्तान के प्रधानमंत्री के रू प में दिखायी देगें।

राष्ट्रीय सोच के आभाव म हिन्दूस्तान की गददी पर बैठने वाला हर शख्श, राष्ट्र का भला नही, उसे गर्त में ले जाने का कार्य करेगा। आज जरूरत इस बात की है कि जनता जाति-पाति के दायरे से बाहर निकल कर अच्छी सोच के लोगो को संसद में पहुचायें। वरना चुप्पी साधने वाले गददीयों पर आयेगें और पाच साल पूरा कर लेगें। आखिर देश पर शासन करने की यह भी तो एक स्टाइल है।


 डा. अरविन्द कुमार सिंह
email - drarvindkumars@rediffmail.com

देखो इनके चेहरे ! है शर्म का कोई निशाँ

ज़रा सोचिये -
आजकल की ताजातरीन खबर है कि भाजपा के तीन विधायक कर्नाटक विधानसभा में मोबाइल पर अश्लील फिल्म देखते पकडे गए हैं . मजेदार तथ्य यह है कि ऐसा करते हुए खबर बनने की आशंका  से बेखबर ये विधायक जब न्यूज़ चैनल पर चर्चा का विषय बने तो बेचारे अजीबोगरीब तर्क देने से बाज नहीं आये . बोले कि वो तो किसी विदेशी गेंग रेप का विडियो देख रहे थे क्योंकि यह उनके मोबाइल पर उपलब्ध कराया गया था . पार्टी प्रवक्ता का कहना है कि वे तो एस एम् एस देख रहे थे और अचानक उनके मोबाइल पर यह विडियो भेजा गया और वे उसे देखने लगे . अब ऐसा एस एम् एस आये और कोई सब कुछ भूलकर उसे देखने लग जाए तो इसमें उसका क्या दोष भला ? अब इससे क्या समझा जाए कि विधायक महोदय ने एक सर्विस सेंटर खोल रखा है जहां से ये सेवाए संचालित की जा रही हैं और कही भी कोई रेप होता है तो विधायक महोदय के फोन पर वह विडियो भेज दिया जाता है घटना चाहे विदेश की ही क्यों न हो ? वाह , क्या अच्छी तकनीक है . घटना हुई नहीं कि तुरंत सूचना प्रदत्त . वसुधैव कुटुम्बकम . वसुधा ही कुटुंब है . हमारी संस्कृति है यह . सारी धरती को हम अपना परिवार मानते हैं . सिर्फ अपने ही नहीं देश दुनिया के झगड़ों में हमारी दिलचस्पी है . रेप केश में तो ज्यादा ही . वैसे भी हमारे यहाँ ही मदेरणा , एन डी व अन्य बहुत से कारनामे करने वाले लोगों कि जमात है . वसुधा में कोई भी घटना कहीं भी हो तो हमारे विधायकों के पास बहुत या सबसे पहले पहुँच जाती है . धन्य है उस क्षेत्र की जनता जहां से ये विधायक महोदय आते हैं . क्योंकि इतने गुणी विधायक के चलते इनके अपने क्षेत्र में जब भी कोई बिजली पानी सड़क शिक्षा चिकित्सा या अन्य आपदा जैसी समस्याएं आती होंगी तो निश्चित तौर पर इनके मोबाइल पर तुरंत सूचना आ जाती होगी और समस्या निवारण के लिए फाइल चल पड़ती होगी . यह हम निश्चित तौर पर कह सकते हैं . आखिर भैया ! विडियो के प्रेषण में तो थोडा समय भी लग सकता है लेकिन एस एम् एस के जरिये  समस्या तो तुरंत ही पहुँच जाती होगी , ऐसा हमारा विश्वास है  और निश्चित तौर पर इससे हमारे विधायकों और सांसदों को सबक लेना चाहिए . एस एम् एस वैसे भी हमारी जिंदगी में वैसे ही शामिल हो गया है और बिन बुलाये मेहमानों की तरह ये एस एम् एस जब तब पहुंचते रहते हैं . अब आप समझ लें . उत्तर प्रदेश में चुनाव चल रहे हैं और ऐसे में कहीं और ज्यादा चुनावी पलीता न लग जाए इस चक्कर में कुशवाहा प्रकरण से बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाने वाली भाजपा ने चाहे अनचाहे मजबूरी में ही सही तीनों विधायकों का निलंबन कर दिया है . ये क्या बात हुई . अब विधान सभा में क्या चल रही बहस कितनी बोरिंग होती है इसका अंदाजा इस घटना से भी हो सकता है . आखिर कहाँ विधानसभा आदि में पूछे जाने वाले सवाल या चर्चा के विषय और कहाँ गेंग रेप . अब ये पता नहीं कि विधायक महोदय समस्या सुलझाने के विषय  में सोच रहे थे या वास्तव में खुशवंत सिंह के अतीत में दिए गए बयान पर अमल कर रहे थे कि यदि लड़की के साथ बलात्कार हो रहा हो और लड़की अपने आपको बचाने में असमर्थ हो तो उसे बलात्कार का आनंद लेना चाहिए . अब विधायक महोदय उस समस्या का समाधान कर भी पायेंगे या नहीं या जिस देश में ये घटना घटी वहाँ की संसद पता नहीं उन्हें ऐसा करने देगी या नहीं या वह एक्शन देगी भी या नहीं पर अपने विधायक साहब को भी मजे लेने में ही यदि मजा आ रहा है तो वे क्यों विधान सभा के उल जलूल सवालों पर ध्यान दें . उसके लिए तो और भी बहुत से लोग हैं और जैसा कि हमारा विश्वास है कि इन विधायकों ने तो अपने क्षेत्र में जरूर एस एम् एस सेवा चला ही राखी होगी . और रही बात यदि आप कहें कि नैतिकता के बलात्कार की तो यह भी कोई चीज है भला ? मदेरणा या एन डी जैसों का क्या ? नैतिकता का बलात्कार तो आये दिन हो रहा है उसका क्या भला ? पोर्न स्टार जैसे शब्द ने यदि एक जगह समाज में बना ली है और लोग चर्चा करने में शर्म करने से बचने में लगे हैं तो फिर बचा क्या है ? वे विधायक भी तो आखिर पोर्न स्टार मूवी ही देख रहे थे .
ज़रा सोचिये , हम कहाँ जा रहे हैं ?

कैसे और क्यों “मीडिया का अधिकांश हिस्सा” हिन्दुओं और हिन्दुत्व का विरोधी है ?

हिन्दुओ और हिंदुत्व को खा रहे है ये रिश्ते ------ रिश्तेदारियों पर एक नज़र डालिये, ------- तब आप खुद ही समझ जायेंगे कि कैसे और क्यों “मीडिया का अधिकांश हिस्सा” हिन्दुओं और हिन्दुत्व का विरोधी है, किस प्रकार इन लोगों ने एक “नापाक गठजोड़” तैयार कर लिया है, किस तरह ये सब लोग मिलकर सत्ता संस्थान के शिखरों के करीब रहते हैं, किस तरह से इन प्रभावशाली(?) लोगों का सरकारी नीतियों में दखल होता है… आदि। पेश हैं रिश्ते ही रिश्ते – (दिल्ली की दीवारों पर लिखा होता है वैसे वाले नहीं, ये हैं असली रिश्ते) -सुज़ाना अरुंधती रॉय, प्रणव रॉय ( एनडीटीवी ) की भांजी हैं।(NDTV) -प्रणव रॉय “काउंसिल ऑन फ़ॉरेन रिलेशन्स” के इंटरनेशनल सलाहकार बोर्ड के सदस्य हैं। -इसी बोर्ड के एक अन्य सदस्य हैं मुकेश अम्बानी। -प्रणव रॉय की पत्नी हैं राधिका रॉय। -राधिका रॉय, बृन्दा करात की बहन हैं। -बृन्दा करात, प्रकाश करात (CPI) की पत्नी हैं। -प्रकाश करात चेन्नै के “डिबेटिंग क्लब” ग्रुप के सदस्य थे। -एन राम, पी चिदम्बरम और मैथिली शिवरामन भी इस ग्रुप के सदस्य थे। -इस ग्रुप ने एक पत्रिका शुरु की थी “रैडिकल रीव्यू”। -CPI(M) के एक वरिष्ठ नेता सीताराम येचुरी की पत्नी हैं सीमा चिश्ती। -सीमा चिश्ती इंडियन एक्सप्रेस की “रेजिडेण्ट एडीटर” हैं। -बरखा दत्त NDTV में काम करती हैं। -बरखा दत्त की माँ हैं श्रीमती प्रभा दत्त। -प्रभा दत्त हिन्दुस्तान टाइम्स की मुख्य रिपोर्टर थीं। -राजदीप सरदेसाई पहले NDTV में थे, अब CNN-IBN के हैं (दोनों ही मुस्लिम + ईसाई supporter चैनल हैं)। -राजदीप सरदेसाई की पत्नी हैं सागरिका घोष। -सागरिका घोष के पिता हैं दूरदर्शन के पूर्व महानिदेशक भास्कर घोष। -सागरिका घोष की आंटी रूमा पॉल हैं। -रूमा पॉल उच्चतम न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश हैं। -सागरिका घोष की दूसरी आंटी अरुंधती घोष हैं। -अरुंधती घोष संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थाई प्रतिनिधि हैं। -CNN-IBN का “ग्लोबल बिजनेस नेटवर्क” (GBN) से व्यावसायिक समझौता है। -GBN टर्नर इंटरनेशनल और नेटवर्क-18 की एक कम्पनी है। -NDTV भारत का एकमात्र चैनल है को “अधिकृत रूप से” पाकिस्तान में दिखाया जाता है। -दिलीप डिसूज़ा PIPFD (Pakistan-India Peoples’ Forum for Peace and Democracy) के सदस्य हैं। -दिलीप डिसूज़ा के पिता हैं जोसेफ़ बेन डिसूज़ा। -जोसेफ़ बेन डिसूज़ा महाराष्ट्र सरकार के पूर्व सचिव रह चुके हैं। -तीस्ता सीतलवाड भी PIPFD की सदस्य हैं। -तीस्ता सीतलवाड के पति हैं जावेद आनन्द। -जावेद आनन्द एक कम्पनी सबरंग कम्युनिकेशन और एक संस्था “मुस्लिम फ़ॉर सेकुलर डेमोक्रेसी” चलाते हैं। -इस संस्था के प्रवक्ता हैं जावेद अख्तर। -जावेद अख्तर की पत्नी हैं शबाना आज़मी। -करण थापर ITV के मालिक हैं। -ITV बीबीसी के लिये कार्यक्रमों का भी निर्माण करती है। -करण थापर के पिता थे जनरल प्राणनाथ थापर (1962 का चीन युद्ध इन्हीं के नेतृत्व में हारा गया था)। -करण थापर बेनज़ीर भुट्टो और ज़रदारी के बहुत अच्छे मित्र हैं। -करण थापर के मामा की शादी नयनतारा सहगल से हुई है। -नयनतारा सहगल, विजयलक्ष्मी पंडित की बेटी हैं। -विजयलक्ष्मी पंडित, जवाहरलाल नेहरू की बहन हैं। -मेधा पाटकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन की मुख्य प्रवक्ता और कार्यकर्ता हैं। -नबाआं को मदद मिलती है पैट्रिक मेकुल्ली से जो कि “इंटरनेशनल रिवर्स नेटवर्क (IRN)” संगठन में हैं। -अंगना चटर्जी IRN की बोर्ड सदस्या हैं। -अंगना चटर्जी PROXSA (Progressive South Asian Exchange Network) की भी सदस्या हैं। -PROXSA संस्था, FOIL (Friends of Indian Leftist) से पैसा पाती है। -अंगना चटर्जी के पति हैं रिचर्ड शेपायरो। -FOIL के सह-संस्थापक हैं अमेरिकी वामपंथी बिजू मैथ्यू। -राहुल बोस (अभिनेता) खालिद अंसारी के रिश्ते में हैं। -खालिद अंसारी “मिड-डे” पब्लिकेशन के अध्यक्ष हैं। -खालिद अंसारी एमसी मीडिया लिमिटेड के भी अध्यक्ष हैं। -खालिद अंसारी, अब्दुल हमीद अंसारी के पिता हैं। -अब्दुल हमीद अंसारी कांग्रेसी हैं। -एवेंजेलिस्ट ईसाई और हिन्दुओं के खास आलोचक जॉन दयाल मिड-डे के दिल्ली संस्करण के प्रभारी हैं। -नरसिम्हन राम (यानी एन राम) दक्षिण के प्रसिद्ध अखबार “द हिन्दू” के मुख्य सम्पादक हैं। -एन राम की पहली पत्नी का नाम है सूसन। -सूसन एक आयरिश हैं जो भारत में ऑक्सफ़ोर्ड पब्लिकेशन की इंचार्ज हैं। -विद्या राम, एन राम की पुत्री हैं, वे भी एक पत्रकार हैं। -एन राम की हालिया पत्नी मरियम हैं। -त्रिचूर में आयोजित कैथोलिक बिशपों की एक मीटिंग में एन राम, जेनिफ़र अरुल और केएम रॉय ने भाग लिया है। -जेनिफ़र अरुल, NDTV की दक्षिण भारत की प्रभारी हैं। -जबकि केएम रॉय “द हिन्दू” के संवाददाता हैं। -केएम रॉय “मंगलम” पब्लिकेशन के सम्पादक मंडल सदस्य भी हैं। -मंगलम ग्रुप पब्लिकेशन एमसी वर्गीज़ ने शुरु किया है। -केएम रॉय को “ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन लाइफ़टाइम अवार्ड” से सम्मानित किया गया है। -“ऑल इंडिया कैथोलिक यूनियन” के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं जॉन दयाल। -जॉन दयाल “ऑल इंडिया क्रिश्चियन काउंसिल”(AICC) के सचिव भी हैं। -AICC के अध्यक्ष हैं डॉ जोसेफ़ डिसूज़ा। -जोसेफ़ डिसूज़ा ने “दलित फ़्रीडम नेटवर्क” की स्थापना की है। -दलित फ़्रीडम नेटवर्क की सहयोगी संस्था है “ऑपरेशन मोबिलाइज़ेशन इंडिया” (OM India)। -OM India के दक्षिण भारत प्रभारी हैं कुमार स्वामी। -कुमार स्वामी कर्नाटक राज्य के मानवाधिकार आयोग के सदस्य भी हैं। -OM India के उत्तर भारत प्रभारी हैं मोजेस परमार। -OM India का लक्ष्य दुनिया के उन हिस्सों में चर्च को मजबूत करना है, जहाँ वे अब तक नहीं पहुँचे हैं। -OMCC दलित फ़्रीडम नेटवर्क (DFN) के साथ काम करती है। -DFN के सलाहकार मण्डल में विलियम आर्मस्ट्रांग शामिल हैं। -विलियम आर्मस्ट्रांग, कोलोरेडो (अमेरिका) के पूर्व सीनेटर हैं और वर्तमान में कोलोरेडो क्रिश्चियन यूनिवर्सिटी के प्रेसीडेण्ट हैं। यह यूनिवर्सिटी विश्व भर में ईसा के प्रचार हेतु मुख्य रणनीतिकारों में शुमार की जाती है। -DFN के सलाहकार मंडल में उदित राज भी शामिल हैं। -उदित राज के जोसेफ़ पिट्स के अच्छे मित्र भी हैं। -जोसेफ़ पिट्स ने ही नरेन्द्र मोदी को वीज़ा न देने के लिये कोंडोलीज़ा राइस से कहा था। -जोसेफ़ पिट्स “कश्मीर फ़ोरम” के संस्थापक भी हैं। -उदित राज भारत सरकार के नेशनल इंटीग्रेशन काउंसिल (राष्ट्रीय एकता परिषद) के सदस्य भी हैं। -उदित राज कश्मीर पर बनी एक अन्तर्राष्ट्रीय समिति के सदस्य भी हैं। -सुहासिनी हैदर, सुब्रह्मण्यम स्वामी की पुत्री हैं। -सुहासिनी हैदर, सलमान हैदर की पुत्रवधू हैं। -सलमान हैदर, भारत के पूर्व विदेश सचिव रह चुके हैं, चीन में राजदूत भी रह चुके हैं। -रामोजी ग्रुप के मुखिया हैं रामोजी राव। -रामोजी राव “ईनाडु” (सर्वाधिक खपत वाला तेलुगू अखबार) के संस्थापक हैं। -रामोजी राव ईटीवी के भी मालिक हैं। -रामोजी राव चन्द्रबाबू नायडू के परम मित्रों में से हैं। -डेक्कन क्रॉनिकल के चेयरमैन हैं टी वेंकटरमन रेड्डी। -रेड्डी साहब कांग्रेस के पूर्व राज्यसभा सदस्य हैं। -एमजे अकबर डेक्कन क्रॉनिकल और एशियन एज के सम्पादक हैं। -एमजे अकबर कांग्रेस विधायक भी रह चुके हैं। -एमजे अकबर की पत्नी हैं मल्लिका जोसेफ़। -एम जे अकबर अब प्रभु चावला की जगह सीधी बात मे आते है ! -मल्लिका जोसेफ़, टाइम्स ऑफ़ इंडिया में कार्यरत हैं। -वाय सेमुअल राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। -सेमुअल रेड्डी के पिता राजा रेड्डी ने पुलिवेन्दुला में एक डिग्री कालेज व एक पोलीटेक्नीक कालेज की स्थापना की। -सेमुअल रेड्डी ने कहा है कि आंध्रा लोयोला कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उक्त दोनों कॉलेज लोयोला समूह को दान में दे दिये। -सेमुअल रेड्डी की बेटी हैं शर्मिला। -शर्मिला की शादी हुई है “अनिल कुमार” से। अनिल कुमार भी एक धर्म-परिवर्तित ईसाई हैं जिन्होंने “अनिल वर्ल्ड एवेंजेलिज़्म” नामक संस्था शुरु की और वे एक सक्रिय एवेंजेलिस्ट (कट्टर ईसाई धर्म प्रचारक) हैं। -सेमुअल रेड्डी के पुत्र जगन रेड्डी युवा कांग्रेस नेता हैं। -जगन रेड्डी “जगति पब्लिकेशन प्रा. लि.” के चेयरमैन हैं। -भूमना करुणाकरा रेड्डी, सेमुअल रेड्डी की करीबी हैं। -करुणाकरा रेड्डी, तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की चेयरमैन हैं। -चन्द्रबाबू नायडू ने आरोप लगाया था कि “लैंको समूह” को जगति पब्लिकेशन्स में निवेश करने हेतु दबाव डाला गया था। -लैंको कम्पनी समूह, एल श्रीधर का है। -एल श्रीधर, एल राजगोपाल के भाई हैं। -एल राजगोपाल, पी उपेन्द्र के दामाद हैं। -पी उपेन्द्र केन्द्र में कांग्रेस के मंत्री रह चुके हैं। -सन टीवी चैनल समूह के मालिक हैं कलानिधि मारन -कलानिधि मारन एक तमिल दैनिक “दिनाकरन” के भी मालिक हैं। -कलानिधि के भाई हैं दयानिधि मारन। -दयानिधि मारन केन्द्र में संचार मंत्री थे। -कलानिधि मारन के पिता थे मुरासोली मारन। -मुरासोली मारन के चाचा हैं एम करुणानिधि (तमिलनाडु के मुख्यमंत्री)। -करुणानिधि ने ‘कैलाग्नार टीवी” का उदघाटन किया। -कैलाग्नार टीवी के मालिक हैं एम के अझागिरी। -एम के अझागिरी, करुणानिधि के पुत्र हैं। -करुणानिधि के एक और पुत्र हैं एम के स्टालिन। -स्टालिन का नामकरण रूस के नेता के नाम पर किया गया। -कनिमोझि, करुणानिधि की पुत्री हैं, और केन्द्र में राज्यमंत्री हैं। -कनिमोझी, “द हिन्दू” अखबार में सह-सम्पादक भी हैं। -कनिमोझी के दूसरे पति जी अरविन्दन सिंगापुर के एक जाने-माने व्यक्ति हैं। -स्टार विजय एक तमिल चैनल है। -विजय टीवी को स्टार टीवी ने खरीद लिया है। -स्टार टीवी के मालिक हैं रूपर्ट मर्डोक। -Act Now for Harmony and Democracy (अनहद) की संस्थापक और ट्रस्टी हैं शबनम हाशमी। -शबनम हाशमी, गौहर रज़ा की पत्नी हैं। -“अनहद” के एक और संस्थापक हैं के एम पणिक्कर। -के एम पणिक्कर एक मार्क्सवादी इतिहासकार हैं, जो कई साल तक ICHR में काबिज रहे। -पणिक्कर को पद्मभूषण भी मिला। -हर्ष मन्दर भी “अनहद” के संस्थापक हैं, मशहूर हिन्दू विरोधी लेख लिखते है, सोनिया गांधी द्वारा गठित nac के मेम्बर है जिसने एक कानून बनाया है हिंदुओं के खिलाफ । - सांप्रदायिक लक्षित हिंसा अधिनियम - -हर्ष मन्दर, अजीत जोगी के खास मित्र हैं। -अजीत जोगी, सोनिया गाँधी के खास हैं क्योंकि वे ईसाई हैं और इन्हीं की अगुआई में छत्तीसगढ़ में जोरशोर से धर्म-परिवर्तन करवाया गया और बाद में दिलीपसिंह जूदेव ने परिवर्तित आदिवासियों की हिन्दू धर्म में वापसी करवाई। -कमला भसीन भी “अनहद” की संस्थापक सदस्य हैं। -फ़िल्मकार सईद अख्तर मिर्ज़ा “अनहद” के ट्रस्टी हैं। -मलयालम दैनिक “मातृभूमि” के मालिक हैं एमपी वीरेन्द्रकुमार -वीरेन्द्रकुमार जद(से) के सांसद हैं (केरल से) -केरल में देवेगौड़ा की पार्टी लेफ़्ट फ़्रण्ट की साझीदार है। -शशि थरूर पूर्व राजनैयिक हैं। -चन्द्रन थरूर, शशि थरूर के पिता हैं, जो कोलकाता की आनन्दबाज़ार पत्रिका में संवाददाता थे। -चन्द्रन थरूर ने 1959 में द स्टेट्समैन” की अध्यक्षता की। -शशि थरूर के दो जुड़वाँ लड़के ईशान और कनिष्क हैं, ईशान हांगकांग में “टाइम्स” पत्रिका के लिये काम करते हैं। -कनिष्क लन्दन में “ओपन डेमोक्रेसी” नामक संस्था के लिये काम करते हैं। -शशि थरूर की बहन शोभा थरूर की बेटी रागिनी (अमेरिकी पत्रिका) “इंडिया करंट्स” की सम्पादक हैं। -परमेश्वर थरूर, शशि थरूर के चाचा हैं और वे “रीडर्स डाइजेस्ट” के भारत संस्करण के संस्थापक सदस्य हैं। -शोभना भरतिया हिन्दुस्तान टाइम्स समूह की अध्यक्षा हैं। -शोभना भरतिया केके बिरला की पुत्री और जीड़ी बिरला की पोती हैं -शोभना राज्यसभा की सदस्या भी हैं जिन्हें सोनिया ने नामांकित किया था। -शोभना को 2005 में पद्मश्री भी मिल चुकी है। -शोभना भरतिया सिंधिया परिवार की भी नज़दीकी मित्र हैं। -करण थापर भी हिन्दुस्तान टाइम्स में कालम लिखते हैं। -पत्रकार एन राम की भतीजी की शादी दयानिधि मारन से हुई है। यह बात साबित हो चुकी है कि मीडिया का एक खास वर्ग हिन्दुत्व का विरोधी है, इस वर्ग के लिये भाजपा-संघ के बारे में नकारात्मक प्रचार करना, हिन्दू धर्म, हिन्दू देवताओं, हिन्दू रीति-रिवाजों, हिन्दू साधु-सन्तों सभी की आलोचना करना एक “धर्म” के समान है। इसका कारण हैं, कम्युनिस्ट-चर्चपरस्त-मुस्लिमपरस्त-तथाकथित सेकुलरिज़्म परस्त लोगों की आपसी रिश्तेदारी, सत्ता और मीडिया पर पकड़ और उनके द्वारा एक “गैंग” बना लिया जाना। यदि कोई समूह या व्यक्ति इस गैंग के सदस्य बन जायें, प्रिय पात्र बन जायें तब उनके और उनकी बिरादरी के खिलाफ़ कोई खबर आसानी से नहीं छपती। जबकि हिन्दुत्व पर ये सब लोग मिलजुलकर हमला बोलते हैं। (नोट – यह जानकारियाँ नेट पर उपलब्ध विभिन्न वेबसाईट्स, फ़ोरम आदि पर आधारित हैं, इसमें हमारा कोई विशेष योगदान नहीं है। यदि इसमें कोई गलती दिखाई दे अथवा किसी नाम या रिश्ते में विसंगति अथवा गलती मिले तो टिप्पणी करें, तत्काल उसमें सुधार किया जायेगा…अपनी तरफ़ से कोई और रिश्ता उजागर करना चाहते हों तो वह भी इसमें जोड़ें…) अब आप बताइए कि जब हर शाख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्ता क्या होगा ????????