Tuesday, 7 February 2012


आखिर आप कब बोलेगें

वर्तमान राजनिति की दिशा और दशा कही से ये आभास नही देती की वो राष्ट्रीय सोच की दिशा में काम करती है। राजनैतिक दल उस प्राइवेट फर्म की तरह काम कर रहे है, जिनकी सोच मात्र व्यकितगत फायदे तक सिमित है।

राष्ट्रीय नेता ( तथा कथित ) राष्ट्रीय मसलो पर सकारात्मक भाषा की जगह नकारात्मक रवैया अपनाये हुये हे। इन नेताओं ने मसलो के समाधान पर कभी बोला हो ऐसा मुझे याद नही। चाहे वो काला धन हो, भ्रष्टाचार हो, साम्प्रदायिकता हो, या फिर क्षेत्रिय विवाद हो।

चलिये इनको माफ किया जा सकता है, ये किसी पार्टी के नुमाइन्दे है। उससे आगे इनकी सोच नही जा सकती हैं। लेकिन क्या देश का प्रधानमंत्री भी यह व्यवहार राष्ट्र के साथ कर सकता है? लगता है श्री मनमोहन सिंह ने मौन व्रत धारण कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 122 लाइसेंस निरस्त किया। पूरा राष्ट्र अपेक्षा कर रहा था कि हमारे प्रधानमंत्री जी इस पर कुछ बोलेगें। अब सवाल ये उठता है आखिर वो क्यों बोले? वो इस लिये बोले कि सरकार की सोच इस दिशा में क्या है? लेकिन उन्हे नही बोलना था सो नही बोले। भरतिय संविधान में न बोलने पर कोर्इ सजा मुकर्रर नही है। लेकिन उसी भारतिय संविधान के तहद मुझे बोलने का अधिकार मिला है और उसे लिखने के माध्यम से मैं व्यक्त कर रहा हू।

बडे साहब के रिटायरमेंट की पार्टी थी। छोटे साहब परेशान थे। कल से उन्हे आफिस का संचालन करना था। आखिरकार सारी झिझक छोडकर वो बडे साहब के पास गये और कहा -'' आपसे मै कुछ सिखने आया हू। कृपया आफिस संचालन के सन्दर्भ में मुझे कुछ बतलाने की कृपा करें । बडे साहब ने कहा - '' मुझे पता था आप आयेगें। मैने दो लिफाफे बनाकर आलमारी में रख दिया है। जब कभी मुसीबत में पडना क्रमश: एक एक लिफाफे को खोलना। तुम्हारी समस्या का समाधान हो जायेगा । छोटे साहब चौकें - दो लिफाफे में पूरी नौकरी? इतना आसान नौकरी करना? खुश हुये, राहत की सास ली और पार्टी समाप्त हुयी।

कुछ वर्षो के बाद छोटे साहब एक बडी मुसीबत में फसे। काफी परेशान थे। तभी उन्हे लिफाफे की याद आयी फौरन आलमारी से पहले नम्बर का लिफाफा निकाला तथा उसे खोला। उसमें लिखा था अपनी सारी गलती नीचे वाले पर डाल दो और साहब ने य ही किया। देखिये कितनी समानता है, काग्रेस ने भी य ही किया। कपिल सिब्बल ने भी य ही कहा -2जी स्पैक्ट्रम घोटाले में भाजपा की पिछली सरकार की नितियों की गलती थी।

लेकिन ये कहानी अभी पूरी नही हुयी है। उस वक्त तो साहब मुसीबत से बरी हो गये। लेकिन कुछ वर्षो के बाद वो पुन: एक मुसीबत में जा फसें। काफी परेशान थे तभी उन्हे दूसरे लिफाफे की याद आयी फौरन आलमारी से लिफाफा निकाला और खोला - उसमें लिखा था - अब तुम भी दो लिफाफे बनाने की तैयारी करो। क्या अर्थ हुआ - बहाने और लिफाफो से नौकरिया नही चला करती, समस्याओं का समाधान चाहिये। लेकिन जो ख्ुाद समस्या हो वो समाधान कैसे निकालेगा? अपने ही लिये सांसद लोकपाल बील पारित कैसे करेगा? अपने ही विदेशो में जमा काले धन के लिये कोर्इ कठोर नियम कैसे बनायेगा? फिर वो चुप नही रहेगा तो आखिर क्या करेगा? लेकिन ऐसी हरकतो से राष्ट्र मजबूत नही हुआ करता, उसका विकास नही होता।

हो सकता है आज्ञाकारिता ( शायद - चापलूसी ) इसकी एक वजह हो? ठीक उस वायुयान चालक की तरह, जिसका किस्सा अब मैं आपको सुनाने जा रहा हू - 

ट्रेनिंग पूरी हो गयी थी। वायुयान चालक बहुत खुश था। आज उसकी वर्षो की साधना पूरी हुयी थी। मुख्य समारोह आयोजित था। उसने अपने पूरे परिवार को आमंत्रित किया था। उसने अपनी मा से कहा कि - इस अवसर पर मै आप सबको वायुयान में आकाश में भ्रमण कराउगा तथा आप सबको अपना कौशल दिखाउगा। मा ने कहा - बेटा वो सब तो ठीक है पर एक बात मैं तुम्हे कहना चाहूगी। बचपन में तू बाते बहुत किया करता था जिससे कर्इ कार्य बिगड जाया करते थे। यह गम्भीर कार्य है अत: इस बात का ख्याल रखना। वायुयान संचालन के वक्त कम बाते करना।

वायुयान चालक ने पूरे परिवार को आकाश में खूब भ्रमण कराया। कुशल संचालन के बाद वो वायुयान को नीचे एयर पटटी पर वापस लाया तथा अपने वायुयान संचालन की कुशलता के लिये अपनी मा से पूछा। मा ने उसकी बहुत तारीफ की। तारीफ से गदगद बेटे ने कहा - '' इतना ही नही मा, मैने आपकी बातो का भी ख्याल रख्खा था। पिता जी वायुयान से नीचे गिर गये, क्या मैं कुछ बोला? भर्इया गिर गया, बहन गिर गयी क्या मैं कुछ बोला? मा , यह सब सुनकर हतप्रभ रह गयी। क्या मैने इन्ही अर्थो में यह बात कही थी?

1 लाख 76 हजार करोड का 2जी स्पैक्ट्रम घोटालादेश में हो गया, प्रधानमंत्री जी कहते है क्या मैं कुछ बोला? 122 लाइसेंस सुप्रीम कोर्ट द्वारा रदद कर दिये गये क्या मैं कुछ बोला? काला धन विदेशो से वापस आयेगा या नही, क्या मैं कुछ बोला? कालमाडी, राजा जेल चले गये, क्या मैं कुछ बोला? मुम्बर्इ बम ब्लास्ट हो गया, क्या मैं कुछ बोला? और बोला भी तो क्या बोला? सब आन रिकार्ड है। उनमें समस्या का समाधान नही, राजनित की चालाकिया हंै। आदरणीय प्रधानमंत्री जी, सोनीया जी तथा देश के समस्त राजनितिक पार्टीयों के सम्मानित नेतागण आप सभी से पूरी विनम्रता से कहना चाहूगा - राजनितिक चालाकियों से राष्ट्र का भला नही हुआ करता है, यह कृत्य राष्ट्र के प्रति विश्वासघात है।

अजीब विडम्बना है, देश की, कोर्इ ब्लात्कार से पिडीत को नौकरी देने की वकालत कर रहा है, तो कोर्इ काले धन के प्रश्न पर काले झण्डे की बात कर रहा है तो किसी को भ्रष्टाचार की समापित कुशवाहा जैसे व्यकित को पार्टी में शामिल करने में दिखार्इ दे रहा है। ये हमारे देश के कर्णधार है। कल हिन्दूस्तान के प्रधानमंत्री के रूप में दिखायी देगें।

राष्ट्रीय सोच के आभाव म हिन्दूस्तान की गददी पर बैठने वाला हर शख्श, राष्ट्र का भला नही, उसे गर्त में ले जाने का कार्य करेगा। आज जरूरत इस बात की है कि जनता जाति-पाति के दायरे से बाहर निकल कर अच्छी सोच के लोगो को संसद में पहुचायें। वरना चुप्पी साधने वाले गददीयों पर आयेगें और पाच साल पूरा कर लेगें। आखिर देश पर शासन करने की यह भी तो एक स्टाइल है।

 डा. अरविन्द कुमार सिंह 
email-drarvindkumars@rediffmail.com


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